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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी बन्धन नज़र आता है. प्रतिज्ञा जीवन की बड़ी सुन्दर व्यवस्था है. अनुशासित जीवन आत्मा को मुक्त करने का साधन बनता है. आप मुझे कहें नौ महीना मां के गर्भ में रहना पड़ा, आजादी थी वहां पर? कर्म की कस्टडी थी. जन्म के बाद पांच वर्ष तक आपको मां की नजर में रहना पड़ा, भूतकाल को झांक कर देखिये कैसी गलामी थी, बिठाए बैठना पड़ा, खिलाए खाना पड़ा, सुलाये तो सोना पड़ा, धमकाए तो सुनना पड़ा. कुछ आपका कानून चला? पचीस वर्ष तक बाप की कैद में रहे, तो बजट वहीं से पास होता था. पाकेट खाली थी. लाचारी थी. पच्चीस वर्ष आपकी गुलामी में गए. कहां गई आपकी आजादी? शब्दों में रहा, आचरण में कुछ नहीं था. पच्चीस वर्ष के बाद घर की जवाबदारी आयी. बड़ी बुरी जवाबदारी होती है. वैदिक परम्परा में एक बड़ा सुन्दर रूपक दिया है. ___ यम-नियम जीवन के अनुशासन हैं. वे जीवन की व्यवस्था और सुरक्षा के लिए हैं. कहीं आपकी आत्मा दुर्गति में न चली जाए, उसे आप प्रकाशित कर पाएं इसीलिए अलग-अलग धर्म में अलग-अलग व्यवस्था हो गई. अनुशासन बतलाए गए ताकि व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण प्राप्त कर पाए. जिस दिन इन्द्रियों पर अनुशासन होगा, बिना प्रयत्न के सहज में आपको आत्मा पर अधिकार मिल जाएगा. प्रदेश पर यदि अधिकार मिल जाए तो देश मिलने ही वाला है. सारा प्रयत्न ही उसके लिए होना चाहिए. सारी व्यवस्था धर्मबिन्द ग्रन्थ में इसी रूप में बतलाई गई है. किस तरह से अपने जीवन का सुन्दर निर्माण किया जाए. किस तरह से जीवन को ज्योतिर्मय बनाया जाए, उसे प्रकाशित किया जाए. अनेक आत्माओं के हित के लिए मेरा जीवन अर्पण हो जाए. वह भावना है? है सहन करने की ताकत? जैसी आपकी दष्टि होगी वैसी ही आपकी सष्टि बन जाएगी, श्री कष्ण जी जैसी दष्टि प्राप्त करें. वे एक बार जा रहे थे, साथ में बहुत से और साथी थे. एक मरा हुआ कुत्ता देखकर सब घृणा प्रकट करने लग गए, अपनी नाक को कपड़े से ढक लिए, थूककर के निकले, बस अरुचि पैदा कर रहे थे, उसे देख कर कृष्ण जी ने अपने मंगल दृष्टि से कहा - अहा! कितना वफादार प्राणी है. नमक खाने पर उसके लिए प्राण दे देता है. जगत में ऐसा एक भी प्राणी आपको नहीं मिलेगा. जिसका आप पालन करें, और आपका वफ़ादार बना रहे. ऐसे प्राणी मिलेंगे जो आप पर आक्रमण कर दें. परन्तु यह बड़ा वफादार है. इसकी प्रामाणिकता बड़ी सुन्दर है. मरने के बाद इसके दांत कितने सुन्दर मोती की तरह चमक रहे हैं. यह उनकी गुण दृष्टि थी. जितने भी व्यक्ति गए, वे विचार में पड़ गए. नतमस्तक हो गए. हमारी दृष्टि भी इतनी मंगल होनी चाहिए कि गन्दगी में भी हम सुन्दरता को देखने लग जाएं. किसी प्राणी के प्रति घृणा और तिरस्कार हमारे जीवन में न हो. मंगल दृष्टि हो. कहीं से भी सद्गुण को ग्रहण करना है. - do 95 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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