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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org काय योग ( हठ योग ) योगश्चतुर्विधो मन्त्र - लय राजह्याभिधः । सिध्यत्यभ्यासयोगेन सद्गुरोपदेशतः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योग प्रणालिका मुख्यतः चार प्रकार की है : - मन्त्रयोग, लययोग, राजयोग और हठयोग । ये योग अभ्यास द्वारा तथा सद्गुरु के उपदेश से सिद्ध होते हैं । क्रियायुक्तस्य सिद्धि: स्यादक्रियस्य कथंभवते । न शास्त्रपाठमात्रेण योग सिद्धिः प्रजायते ॥ जो व्यक्ति अभ्यासयुक्त क्रिया करता है, वह सिद्धि को वरण करता है, परन्तु जो क्रिया ही नहीं करता उसे सिद्धि कैसे प्राप्त हो सकती है ? कुछ लोगों का कहना है कि हम भी योगाभ्यास करना चाहते हैं, किन्तु योग बहुत कठिन होने से हम नहीं कर पाते । किंतु शास्त्र में कहा गया है कि 'सर्वेषां तु पदार्थानामभ्यासः कारणं परम् ।' सभी पदार्थों को प्राप्त करने का मुख्य कारण अभ्यास है । प्रतः परिश्रमपूर्वक अभ्यास करते रहना चाहिये, सफलता अवश्य मिलेगी. अभ्यास से क्या नहीं हो सकता ? कहा भी है 'अभ्यासेन स्थिरं चित्तमभ्यासे सेनानिलच्युतिः । अभ्यासेन परानन्दोह्यभ्या सेनात्मदर्शनम् ॥' मन बहुत चंचल है, फिर भी अभ्यास द्वारा वश में किया जा सकता है । पवन को वश में करना अत्यन्त कठिन है, फिर भी अभ्यास द्वारा उसे वश में किया जाता है । परमानन्द की प्राप्ति सरल नहीं है, पर अभ्यास द्वारा उसे भी प्राप्त की जा सकती है । श्रात्मदर्शन या आत्म-साक्षात्कार जो योग का मुख्य लक्ष्य है, उसे भी अभ्यास द्वारा प्राप्त किया जा सकता है । प्रश्न है कि सिद्धि प्राप्ति कैसे की जा सकती है ? दीन बनकर For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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