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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्य [ १२१ आप कहेंगे कि व्यवहार में तो झूठ बोले बिना काम नहीं चलता, पर ज्ञानी पुरुष तो यही कहते हैं कि सत्य के बिना व्यवहार भी नहीं चल सकता। यदि कोई पुरुष एक दिन के लिये भी सत्य बोलना बन्द कर दे तो उसका व्यवहार बन्द हो जायगा। 'सज्जन इस झूठ के जरिये, इज्जत में फर्क आता है। भरोसा न करे कोई, झूठ नमक से खारा है ।।' अविश्वास का मूल कारण ही असत्य भाषण है। स्टेशन पर उतर कर यदि आप रिक्शा, टैक्सी या तांगे वाले को अपने गन्तव्य स्थान का ठीक नाम नहीं बतायेंगे तो क्या आप अपने स्थान पर पहुँच सकेंगे ? आपको प्यास लगी है, किन्तु यदि आप किसी को सच-सच नहीं बतायेंगे कि आप प्यासे हैं, तो क्या आपको पानी मिलेगा? बाजार में जाकर यदि आप विक्रेता से अपनी इच्छित वस्तु को ठीक ठीक नहीं बताग्रीगे तो क्या आप इच्छित वस्तु खरीद सकेंगे ? नहीं। तो कहना होगा कि सत्य के बिना व्यवहार भी नहीं चल सकेगा। मृषावाद (झूठ) के दो भेद हैं - (१) द्रव्य और (२) भाव । जानकर या अनजान से जो झूठ बोला जाता है, वह द्रव्य मृषावाद कहलाता है। पुद्गल आदि जड़ वस्तु को अपना कहे तथा राग द्वेष कृष्ण लेश्या प्रादि को पागम विरुद्ध प्ररुपित करे, उसे भाव मृषावाद कहते हैं। भाषा के चार प्रकार बताये गये हैं--(१) सत्य, (२) असत्य, (३) मिश्र और (४) व्यवहार। इनमें से सत्य और व्यवहार भाषा बोलनी चाहिये। असत्य और मिश्र भाषा का त्याग करना चाहिये। क्योंकि सत्यवक्ता को बाह्य विजेता नहीं परंतु अंतरंग विजेता माना जाता है । अहिंसा आदि व्रतों में भूल हो जाये तो प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध किया जा सकता है, किंतु सत्य का त्याग एक बार भी कर देने पर फिर से शुद्ध नहीं किया जा सकता क्योंकि एक बार का भी असत्य अविश्वास का कारण बन जाता है । असत्य चार प्रकार का है (१) भूत निह्नव, सत्य को छुपाना, आत्मा पुण्य, पाप मोक्ष नहीं है ऐसी झूठी प्ररुपणा करना । (२) अभूतोद्भावन, जो नहीं है उसे है कहना और जो है उसे नहीं है कहना, आत्मा श्यामाक For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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