SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० ] सत्य पूछा। चित्रकार ने कहा, "अभी नहीं बना है, पर अब शीघ्र ही बन जायेगा।" चित्रकार वहीं चित्र बनाने लगा। राजा बहुत अप्रसन्न हुआ, पूछा, "इतने दिन क्या कर रहे थे ?'' चित्रकार-“राजन ! मैं क्या कर रहा था ? यह अभी बताता हूँ।" राज्यसभा में चारों ओर मुर्गे की आवाज होने लगी, इधर उभर मुर्गा दौड़ने लगा, वही आवाज, वैसा ही व्यवहार, वैसा ही प्राचरण । सब चकित, यह मनुष्य है या मुर्गा ? राजा ने चित्रकार से पूछा, "यह क्या कर रहे हो ?" चित्रकार- "राजन् ! तीन वर्ष तक मैंने क्या किया, वही तो बता रहा हूँ। मुर्गा बने बिना मुर्गे का जीवन्त चित्र नहीं बन सकता । चित्र बनाया या नहीं, इसमें कौनसी बड़ी बात है ? चित्र तो प्राधे घंटे में बनाकर दे दिया जा सकता है, परन्तु वह जीवन्त है या नहीं, इसकी परीक्षा क्या है ? सभी चित्रकारों के चित्र वहाँ रखे गये। एक मुर्गा मँगवा कर दरबार में छोड़ दिया गया । एक एक चित्र के समक्ष मुर्गा जाता, ताकता और मुह फेर लेता । जब राजचित्रकार के चित्र के सामने गया तो मुर्गा उस वित्रित मुर्गे से लड़ने लगा । यही जीवन्त चित्र है। जो स्वयं सत्यवान नहीं होता, वह सत्य की पूजा नहीं कर सकता । सत्यवान बनकर ही सत्य की पूजा की जा सकती है । इसीलिये सत्य को सत्यनारायण कहा गया है । प्रश्नव्याकरणसूत्र में अहिंसा आदि पांच व्रतों का वर्णन पाता है, उसमें अन्य किसी व्रत को भगवान का पद नहीं दिया है, किन्तु सत्य को ही भगवान की उपमा दो गई है: 'सच्चं खलु भगवयं' सत्य ही भगवान् है। वैदिक धर्म में सत्यनारायण शब्द प्रचलित उसका अर्थ भी यही है। कि सत्य ही नारायण (भगवान) है। शास्त्र में और भी लिखा है: 'सच्चं लोग्रामिसारभूयं' सत्य ही समस्त लोगों में सारभूत तत्त्व है। ठाणांगसूत्र के चौथे ठाणे में चार प्रकार का सत्य बताया गया है:-(१) काया की सरलता, (२) भाषा की सरलता, (३) भावों को सरलता और (४) इन तीनों योगों की अविसंवादिता (मन, वचन, काया की एकरूपता) । ये सत्य के चार प्रकार हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy