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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पछी ' नमोऽईत् ' कहने निम्न लिखित मन्त्र बोलतां वासक्षेप करवा. पूर्वक पत्र पुष्पफळ अष्टगन्धादिधूप तेमज केसर चंदनादिनां द्रवो अधिवासित करवां. पत्रपुष्पादीनामधिवासनामन्त्रः- ॐ वनस्पतियो ! वनस्पतिकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्यात् प्रज्ञायां निरर्ययाः सन्तु, निष्पापाः सन्तु निरपाया: सन्तु, सद्गतयः सन्तु नमेऽस्तु संघट्टन हिंसापापमर्हदर्चने स्वाहा || थाळी बगाडवी. पछी 'नमो' ऋहीने निम्नलिखित मन्त्र बोलतां वासक्षेप करवा पूर्वक जल अभिमन्त्रित कर जलमिवामितमन्त्र ॐ आप ! अपूकाया एकेन्द्रिया जीवा निश्वाद्यार्हत पूजायां निरव्यथाः सन्तु, निष्पापाः सन्तु निरपायाः - सन्तु, सद्गतयः सन्तु नमेऽस्तु संघट्टन हिंसापापमुदचने स्वाहा ॥ थाळी वगाडावी. पछी 'नमान" कहीने निम्नलिखित 'आत्मरक्षा महा'विद्या' स्तोत्र बोलवा पूर्वक आत्मरक्षा एटले अंगरक्षा करवी || श्री नमस्कार - महामंत्ररूप आत्मरक्षा महाविद्या ॥ “ॐ परभेष्ठि- नमस्कार, सारं नव पदात्कम् । पंजराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ आत्मरक्षाकर वज्र “ॐ नमो अरिहंताणं शिरस्क शिरस स्थितम् । “ॐ नमो मन्त्र सिद्राणं मुखे मुखपट वरम् ||२|| “ॐ नमो आयरियाण अङ्ग - रक्षातिशायिनी । “ॐ नमो ज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दढम् ॥३॥ " "ॐ नमोलोए सव्व साहूणं, मोचके पादयोः शुभे ! ऐसो पंच नमुक्काशे, शिला वज्रमयी तले ||४|| For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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