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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सब-पाव -प्पणासणो, वो वकामयो बहिः । मंगलाणं च मवेसि, खादिराङ्गार ग्वातिका ।।५।। स्वाहान्त-च पद ज्ञेयं, पढम हवइ मंगलं । वोपरि वन्नमयं, पिधानं देहरक्षणं ।।६।। महाप्रभावा रक्षेयं, शुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठो-पदोदभूता, क.थता पूर्व मूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमिष्ठि पदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं व्याधिराघिश्चापि कदाचन ॥८॥ ॥ अथ श्री कुम्भस्थापनविधिः ॥ अनन्तानन्त परमतारक श्री जिनेश्वर परमात्मानी जमणी वाजुए महामांगलिक कुम्भ तथा दीपक स्थापन करवाना स्थान उपर चन्द्रवो बंघावी, सुवर्ण जन्नु आच्छाटन करणे. परम पूज्यपाद गुरुमहाराज भूमिशुद्धिमत्र बोलतां वामक्षेप करीने भूमिशुद्धि करे कुन्भस्थापनादि विधि विधानोमा लाभ लेनार श्रावक-श्राविकानां जमणा हाथे मिढल अथवा गंवासूत्र (नाडा छडी) बांधवी. कुम्भ अने कुम्भनी जमणी बाजु दीपक स्थापन करवाना स्थान सुकुमारिका. सौभाग्यवती अथवा श्रावक कुमकुम (केसर)ना स्वस्तिक करी उपर अक्षत तथा सोपारी मूकीनं कुम्भस्थापन माटे आलेखेल स्वस्तिक उपर सवाशेर ६५० थी ७०० प्राम प्रमाण शालि-बीहि अथवा जवनो स्वस्तिक करवा. दीपक स्थापनना कंकुनो स्वस्तिक कराववा कुंभ दीपकनी सुरक्षा माटे कसुंखा रंगर्नु एटले रक्तवस्रनुं द्वारवाळु मंगलगृह निर्माण कराव For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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