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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्नात्र पूजा. ॥ ढाल ॥ आठमी॥ ॥ तीर्थकमलदल उदक भरीने पुष्कर ॥ सागर आवे ॥ ए देशी॥ ॥ पूरणकलश शुचि उदकनी धारा, जिनवर अंगें नामे ॥ आतम निर्मल भाव करता, वधते शुभ परिणामें ॥ अच्युतादिक सुरपति मज्जन, लोकपाल लोकांत ॥ सामानिक इंद्राणी पमुहा, एम अभिषेक करंत ॥१॥ ॥गाथा ॥ ॥ तव ईसाण सुरिंदो, सकं पभणेई, करइ सुपसाओ ।। तुम अंके महन्नाहो, पणमित्तं अम्ह अप्पेह ॥२॥ ता सक्दो पभणेई, साहमी वच्छलंमि बहु लाहो ॥ आणा एवं तेणं, गिहि हवो उक्कयत्याभो ॥३॥ एम कही सर्व स्नात्रिया कलश ढाले, अने मुखथी नीचे प्रमाणे पाठ कहे ॥ ॥ ढाल ॥ तेहीज ॥ ॥ सोहम सुरपति वृषभ रूप करी, न्हवण करे प्रभु अंग ॥ करिय विलेपण पुप्फमाल ठवि, वर आभरण अभंग ॥ तव सुखर बहु जय जयख करि, नाचे धरी आणंद ॥ मोक्ष मार्ग सारथपति पाम्यो, भांजणुं हवे भव फंद ॥ ४ ॥ कोडि बत्रीश सोवन उवारी, वाजंते वर नादें ॥ सुरपति संघ अमरश्री प्रभुने, जननीने सुप्रसादें ॥ आणी थापी एम पयंपे, अमें निस्तरिया आज ॥ पुत्र तुमारो धणी रे हमारो, तारण तरण झहाज ॥५॥ मात जतन करि राखजो एहने, तुम सुत अम आधार ॥ सुरपति भक्ति सतत नंदीश्वर, करे जिनभक्ति उदार ॥ निय निय कप्प गया सवि निजर, कहेतां प्रभुगुणसार ।। दीक्षा केवल ज्ञान कल्याणक, इच्छा चित्त For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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