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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८६६ स्नात्र पूजा. करि सहस अट्ठोतरा, छत्र चामर सिंहासन शुभतरा ।। उपगरण पुण्फ चंगेरी पमुहा सवे, आगमें भासिया तेम आणी Ba || २ || तीर्थजल भरिय करकलश करि देवता, गावता भावता धर्म उन्नतिरता ॥ तिरिय नर अमरने हर्ष उपजावता, धन्य अम्ह शक्ति शुचि भक्ति एम भावता ॥ ३ ॥ समकित बीज निज आत्म आरोपता, कलश पाणीमरों भक्तिजल सींचता । मेरु सिहरोवरें सर्व आव्या वही, शक उत्संग जिन देखी मन गह गही ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ वस्तुंच्छंद ॥ || हो देवा हो देवा अणाइ कालो, अदिट्ठ पुद्दो तिलोयतारणो तिलोय बंधु मिच्छत्त मोहविर्द्धसणी अणाइ तिण्हा विणासणो, देवाहिदेवो दिट्ट बोहिय कामेहिं ॥ ५ ॥ ॥ ढाल तेहीज ॥ ॥ एम पभणंत वण भवणं जोईसरा, देव वेमाणिया भत्ति धम्मायरा ॥ केवि कप्पट्टिया केवि मित्ताणु गा, केवि वर रमणि वयणेण अइ उत्थुगा ॥ ६ ॥ ॥ वस्तुच्छंद ॥ ॥ तत्थ अच्चुय तत्थ, अच्चुय इंद आदेस ॥ कर जोडि सवि देवगण, लेय कलस आदेस पामिय ॥ अद्भुतरूप सरूप जुअ, कवण एह उत्संगें सामिय ॥ इंद्र कहे जग तारणो, पारग अम परमेस ॥ नायक दायक धम्म निहि, करियें तसु अभिसेस ॥ ७ ॥ १६ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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