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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री देवचंद्रजीकृत छटक प्रश्नोत्तर. पूखे ए सूत्रनो पण एहज आशय छे, जिहां "छदवापन्नत्ता" इत्यादिक सूत्र पण व्यवहारकालने उपचार मानी छ कला ए आशयसहित छे, तेमाटे एहि आशय सिद्धांतकारनो छे. सिद्धांतवादी पण इमज कहे छे इहां जूदो पोतानी मतिना दोषे समझण विना सिद्धांतवादीपणो जुदो माने तेहने संसार बधे, अने सिद्धांत अनुयायी सिद्धांतवादी श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणथी वधतो बीजो कोइ नथी, सिद्धांतनी खरी आज्ञा प्रमाणजीव छे. तेहथी वधतो हीनो चित्तमां विकल्प करे तेहने संसार वधे इम धारज्यो, एटले आवलिकादि व्यवहारकाल ते सर्व लौकिक छे. परमार्थे पंचास्तिकायनीवर्त्तनाने काल कहीये छे. पण जूदो नथी, अने कालद्रव्य को वे उपचारे छे, तिहां वली पूछे जे उपचार वस्तुनी छती राखीने को छे के वस्तु पांचज छे ? तेहनो उत्तर जे वस्तुपणे मूलसूत्रने प्रमाण पांचज वस्तु छे. छठो वस्तुपणे नथी, अने पंचास्तिकायमध्ये स्वकालरूप एक स्वभावपर्याय छे, तेहने काल मान्यो छे. ते स्वकालरूप पर्याय ते पंचास्तिकायमध्ये छतो छे. तेमाटे छत्तानो उपचार छे. इहां कोइ पूछस्ये जे छतो तेहने उपचार छे किम कहीये ? तेहनो उत्तर जे, जिम छे तेहथी वती अवस्था कहेवी ते उपचार, जे वर्त्तना ते पर्याय स्वभाव हृतो तेहने द्रव्यपणो कहेवो ते उपचार छे एटले द्रव्यपणो अछतो छे, इम धारवो, तथा अजीवना १४ भेदमध्ये तथा ५६० भेदमध्ये अछतो होवे तो किम गण्यो ? तेहनो उत्तर जे धर्मास्तिकायदेश १ अधर्मास्तिकायदेश २ ए भेद अछता छे, पण ए भेद मध्ये गण्या छे तेमाटे ए भेद सर्व वस्तुगति तथा उपचार ए वे मेलीनेज प्ररूप्या छे, पांचसेसाठ भेदमध्ये १७ For Private And Personal Use Only ९४९
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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