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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९०४ विचार रत्नसार. निगोदमांथी नीकळी व्यवहारराशीमां आवे तथा व्यवहारराशीया जीव पाछा निगोदगोळकमां जाय तो ते एकादिथी मांडी उत्कृष्ट अनंता सुधी जाय, एम व्यवहारराशीया नीकळे तो उत्कृष्ट अनंता नीकळे, पण अव्यवहारराशीया तो उत्कृष्ट १०८ नीकळे, तेमां भव्य अने अभव्य बेउ होय ते सूक्ष्म निगोदना अनंता नीकळ्याबाद निगोदमांहे समाय, बीजामांहे नहि, तथा एकसूक्ष्म निगोदमांहे अनंता जीव केटला छे ? तोके त्रण काळना जेटला समय अनंता छे, तेथी अनंता जीव एक निगोदमांही छे, तेथी ज्यारे केवळी भगवंतने सिद्धना जीवनी संख्या पुछीए, त्यारे कहे छे के एक निगोदने अनंतमे भागे सिद्धमां जीवो छे, एम ज्यारे पुछीए त्यारे जवाब मळे, केम जे पूर्वोक्त निगोदअनंतानुं स्वरूप विचारतां ए वात यथार्थ विवेकीने समजमां आवे, माटे उत्तमजीवे श्रीवीतराग परमात्मानुं वचन सदा सर्वदा सद्दहवा योग्य छे, आपणी बुफिनी मंदताने लीधे निरोगी, निर्मम वीतराग प्रभुना वचनमां संदेह लावषो नहि, केम जे एमणे तो पोताना ज्ञानमां दिखें तेज का छे अने तेज सत्य छे. जूनी प्रतिमा नीचे प्रमाणे पाठ छे. व्यवहारराशिया बादरनिगोदमाहे जे अनंता छे ते करी कर्मनी बहु लताए सूक्ष्मनिगोद गोलकमांहे जाये ते सित्तेर कोडाकोडी सागरोपम सुधी तिहां रहे वळी पाछा कंदादिक साधारणमाहे आवे इम संबंधे सूक्ष्मना १५२ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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