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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. मांहि आव्या छे अनंताकंदादिक मांहे छे. तथा जेटला जीव सूक्ष्मनिगोदगोलकमांहेथी निकल्या छे ते व्यवहारराशिमाहे आव्या ते कालादिक लब्धि पामी सिद्धिवरे तेटला अव्यवहारनिगोदमांहेथी नीकळी उंचा व्यवहारराशिमाहे आवे पण व्यवहारराशि तो ओछा न थाय, कदापि मुक्ति जावानो विरहकाल होय तेटला काल सुधी सूक्ष्म अव्यवहारराशि निगोदनो जीव कोइ व्यवहारराशिमां न आवे एहवं उपमितिभवप्रपंचग्रंथमांहे का छे. २७१ प्र०-बादरसाधारणवनस्पतिकायमांथी जीव मरीने सूक्ष्म गोळकनिगोदमां जाय तो त्यां केटलो काळ उत्कृष्ट रहे. उ०-अढीपुद्गलपरावर्तन, मतांतरे असंख्याति उत्सर्पिणी अवसर्पिणी सुधी पण कर्तुं छे, त्यांथी नीकळी बादर निगोद कंदमूळ मांहि उत्कृष्ट ७० कोडाकोडी सागरोपम सुधी रहे, एकनिगोदनो गोळो असंख्याताआकाशप्रदेश अवगाही रह्यो छे, तथा अव्यवहारराशिया निगोदीआ जीव जे गोलकमां छे ते भवस्थितिपाकतां उंचा आवे ते एकसमये उत्कृष्ट केटला नीकळे ? तोके जेटला अढीद्वीप मांहीथी सकळकर्म खपावी एकसमये जेटला जीव सिजि वरे, तेटला सूक्ष्मनिगोदमांथी नीकळी व्यवहारराशीमां आवे, ते जघन्य एकसमयमां एक, बे, वणथी उत्कृष्ट १०८, अने तेटलाज सूक्ष्म १५१ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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