SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 923
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९८ विचार रत्नसार. नामकर्मनो उदय गुणठाणा १४ सुधी, गोत्रकर्मनो उदय गुणटाणा १४ मा सुधी, अंतरायकर्मनो उदय गुणठाणा १२ मा सुधी, ज्ञानावरणीयकर्मनी उदीरणा १२ मा गुणठाणा सुधी, दर्शनावरणीयकर्मनी उदीरणा १२ मा सुधी, वेदनीयकर्मनी उदीरणा ६ सुधी, मोहनीयनी १० मा सुधी, आयुकर्मनी ६ सुधी, नामकर्मनी १३ मा सुधी, गोत्रकर्मनी १३ मा सुधी, अंतरायनी १२ सुधी, हवे ज्ञानावरणीय कर्मनी सत्ता गुणठाणा १२ मा सुधी, दर्शनावरणीय कर्मनी सत्ता १२मा सुधी, वेदनीयकर्मनी सत्ता १४मा सुधी, मोहनीयकर्मनी सत्ता ११ मा सुधी, आयुकर्मनी सत्ता १४ मा सुधी, नामकर्मनी सत्ता १४ मा सुधी, गोत्रकर्मनी सत्ता १४ मा सुधी, अंतरायकर्मनी सत्ता १२ मा सुधी होय, एवं बंध उदय उदीरणासत्तानुं स्वरूप कडुं छे. ए सर्व भाव केवलज्ञानी एकजीव स्वरूपे द्रव्य गुणपर्याये छे तेहवा अनंताजीव देखे, एकेक जीवने अनंताकर्म जे रीते छे ते देखे, एकेक जीवने अनंताभव देखे छे. एकेक जीवना अनंताभाव देखे छे, भावते परिणाम इम केवली सर्वभाव अस्तिनास्तिरूपे जीम छे ते तीम जाणे ते देखे इति भाव । २६९ प्र०-अचित्तमहास्कंध ते शुं ? अने तेनो समुद्घात तथा केवळीसमुद्घात केवी रीते थाय छे तेनुं स्वरूप कहो. For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy