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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 113 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. ८९७ स्नी छाया छतां छायडो धूमाडा वगेरेना पुद्गलो नजरे देखाय छे, पण हाथमां ग्रहवाय नहि, माटे बादरसूक्ष्म, ४ सूक्ष्मबादर ते गंध, रस, स्पर्श शब्दादिकना पुलो आंखे देखाता नथी, परंतु स्पर्शादिके लक्षणे जणाय छे, माटे तेने सूक्ष्मबादर कहिए, ५ सूक्ष्म ते अष्टकर्मवर्गणाना पुलो चार स्पर्शवाळा छे ते नजरे देखाता नथी माटे; ६ सूमसूक्ष्म ते छटो शुद्धपरमाणुपुद्गल ते बे स्पर्शवाळा अत्यंतसूक्ष्म छे माटे ए रीते छ प्रकारना पुल संसारमध्ये व्यापी रह्या छे, जेम छ कायना जीव व्यापी रह्या छे तेम जाणवा. २६८ प्र० - ज्ञानावरणीयादिकर्मनो बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता केटला गुणठाणा सुधी होय. उ०- ज्ञानावरणीयनो बंध गुणठाणा १० मासुधी, दर्शनावरणीयनो बंध १० मा सुधी, वेदनीयनो बंध गुणठाणा १२ मा सुधी, मोहनीयनो बंध गुणठाणा नवमा सुधी, आयुकर्मनो बंध गुणठाणा सातमा सुधी, नामकर्मनो बंध गुणठाणा १० सुधी, गोत्रकर्मनो बंध गुणठाणा दशमा सुधी, अंतरायकर्मनो बंध गुणठाणा दशमा सुधी, हवे ज्ञानावरणीयकर्मनो उदय गुणठाणा १२ मा सुधी, दर्शनावरणीयकर्मनी उदय गुणठाणा १२ मा सुधी, वेदनीयकर्मनो उदय गुणठाणा १४ मा सुधी, मोहनीयकर्मनो उदय गुणठाणा १० मा सुधी, आयुकर्मनो उदय गुणठाणा १४ मा सुधी, १४५ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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