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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. वादमां एकेंद्रिय के प्रसादि जीव संख्यानुमान कराय छे. ए असंख्यातउत्सर्पिणी प्रमाणे इम त्रण सूक्ष्मपल्यो शास्त्रने विसे उपयोगी होइ तिन बादर कह्यां ते सूक्ष्मनो सुखावबोधार्थ इहां प्रायः घणो अद्धापल्योपमनो प्रयोजन छे, इम कोडाकोडी सागरोपमें एककालचक्र तेणे अने ते कालचके पुद्गलपरावर्त होइ ते आठ प्रकारना छे ते त्यांथी जो जो. अस्य गाथा-उझार अखित्तं, पलियतिहा समय वा समय समए किसवहारोदीवोदही, आउसस्साइ परिमाणं ॥१॥॥ पांचमें कर्म ग्रन्थे उक्तं. २४३ प्र०-आत्मसमअवस्थानउपयोगरूप ध्यानदशा केवी रीते पमाय ? उ०-मोहवशे जीव परभावअनुयायि प्रवृत्ति करे छे. मिथ्या सुखनी तृष्णाए मूल्यो थको संसार भ्रमण करे छे, ज्यारे मोहस्थिति घटे त्यारे परप्रवृत्ति छुटे, अने ज्यारे परप्रवृति टळे त्यारे विषयथकी विरक्त बुद्धि थाय, अने तेणे करी मनोरोध थाय, केमजे कारण विना कार्य बनतुं नथी, मनने भमवानुं कोई कारण के ठाम न होवाथी ते संकल्प विकल्प श्याना करे ? जेम तृण विनानी भूमिमां एटले उखर भूमिमां पडेलो अग्नि केने बाळे, अर्थात् पोतानी मेळे उपशमी जाय छे, तेम विषय वांछा टळवाथी मन पोतानी मेळेज रुंधाय अने मन रंधायाथी मननी चंचळता मटे, तेवारे मन एकाग्र थइने आ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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