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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विचार रत्नसार. ८६९ संख्यातगुण वृद्धि, २ असंख्यातगुण वृद्धि, ३ अनंत गुण वृद्धि, ४ अनंत भाग हानि, ५ असंख्यात भाग हानि, ६ संख्यात भाग हानि; एम द्रव्ययी द्रव्य परिणमन षड्गुण हानि वृद्धि रूप अगुरुलघु पर्याय सिद्धां पण छे. २२० प्र० - आठ कर्मनी वर्गणा अने कार्मण शरीरमां शो फेर छे ? उ०- कार्मण शरीर ते नामकर्मनी प्रकृति ते नामकर्मनी वर्गणारूपे कार्मण शरीर जाणीए, बाकी बीजा सात कर्मनी वर्गणा ते एहने विषे छे इम आधाराधेय भावे छे. जेम कणनी गांठडी पिण वस्त्रमिन्नतिंम कर्मोंनी वर्गणा जुदी ते किम जाणीहूं ? जिम के - वली भगवंतने ज्ञानावरणीयादि चार कर्मनी वर्गणा मूलथी गइ पण तोहि कार्मण शरीर छे त्यारे ते अनुमाने अन्य कर्मनी वर्गणामिन्न, कार्मण शरीर ते भिन्न, इंम कार्मण शरीरनो स्वरूप जाणवो, पछी तो जेम तीर्थकर देवे कनुं ते सत्य सद्दह्यो छे. इति भाव । २२१ प्र० - चतुर्विध बंध हेतु पूर्वक कहो. २२२ प्र० - केवळी रीते ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ०- योग अने कषाय प्रतैया बंध चार प्रकारे छे, त्यां एकला योगनी हलचले प्रकृतिबंध अने प्रदेशबंध थाय छे, अने कषाये करी स्थितिबंध अने रसबंध निपजे छे. भगवंतने योग प्रतैयो शाताबंध छे, ते शी ११७ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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