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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. उव उ०- काउस्सग्ग द्रव्य अने भाव बे प्रकारे कह्यो छे. वाइ सूत्रमां द्रव्य काउस्सग्ग चार प्रकारना छे:शरीर काउस्सग्ग, २ उपधि काउस्सग्ग, ३ भत्तपाण काउस्सग्ग, अने क्रोधादि चार कषायना त्याग रूप काउस्सग्ग. ( कषायकायोत्सर्ग.) ७५७ भाव काउस्सग्गत्रण प्रकारे छे:- १ कषाय काउस्सग्ग, २ संसार काउस्सग्ग, ३ कर्म काउस्सग्ग, ते मध्ये कषाय काउस्सग्ग क्रोधादि चार प्रकारना छे, संसार उसने (देव, मनुष्य, तिर्यच, अने नरक ए गतिनी इच्छा रहितपणा रूप ) चार प्रकारनो जाणवो, कर्म काउस्सग्ग आठ प्रकारनो; ते ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मना भेदे आठ प्रकारनो जाणवो. ९ प्र० - विधि अने अविधिए करेली क्रिया यथाक्रमे केवा फळ रूपे परिणमे १ उ०- शुभ क्रिया जे विधिनी छे ते स्वभावरुपे परिणमे, त्यां निर्जरा निपजे, तथा शुभ क्रिया जे अविधिनी छे ते बंधरुपे परिणमे; ते लौकिक यश सौभाग्यादि फळरूप परिणमे; तथा पुण्यरूप परिणमे ते बंधरुप थाय, अने तेथी संसार भ्रमण विशेष निपजे. १० प्र० - जीवने खेद उपन्यो केम टळे ? For Private And Personal Use Only उ०- जीवने खेद निवारखाने अर्थे पूर्वकृत कर्म संभारी ए. जेवां जीवे पूर्वे कर्म बांध्यां छे, तेवां उदये आवे छे; ते मध्ये केटलiएक कर्म प्रदेशथी वेदीने खेखे छे: केटलiएक निवड कर्म बांध्यां ते विपाके (रसो
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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