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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७२ कर्मग्रन्थस्य टबार्थः Awar मोह गुणठाणाना जीव संख्यात गुणा छे. तिणसु सूक्ष्मसंपरायना जीव, अनिवृत्ति बादरना जीव, निवृत्तिना जीव अधिका छे. जे कारजे. कारजअर्थि उपशम, क्षपक; श्रेणे बेउ इंणे गुणठाणे छे अने माहोमांहे बराबर छे. । ६५ ।। जोगि अपमत्तइअरे, संखगुणा देस सासणा मीसा। अविरय अजोगि मिच्छा, असंख चउरो दुवेऽणंता ६६॥ अर्थ-तिणयी सयोगी केवळी जीव संख्यातगुणा छे, तिणसु अप्रमत्त गुणठाणाना जीव संख्यात गुणा छ, तिणसु प्रमत्त गुणठाणाना जीव संख्यात गुणा छे, तिणसु देशविरतिना जीव असंख्यात गुणा छ, तिणयी सास्वादनना जीव संख्यात गुणा छे. तिणसु मिश्र जीव असंख्यात गुणा छ, तिणसु अविरति समकीनी जीव असंख्यात गुणा छे. तिणसु अयोगी सिद्ध अनंत गुणा, तेहथी मिथ्यात्वी जीव अनंतगुणा छे. ॥६६॥ उवसम खय मीसोदय, परिणामा दु नवहारइग वीसा। तिअभेय सन्निवाइअ, सम्मं चरणं पढमभावे॥६७॥ अर्थ-हवे पांच भाव कहे छे-उपशमभाव १, क्षायिकभाव २, क्षयोपशमभाव ३, औदयिकभाष ४, पारिणामिकभाव ५, तिहां प्रथम उपशमभावना बे २, भेद छे. क्षायिक भावना नव मेद छे; क्षयोपशमभावना अढार भेद छे. औदयिकभावना एकवीस भेद छे. अने पारिणामिक भावना तीनभेद छे. ए पांच भाव मळ्यां छतां जे संयोगी भांगा उपजे ते सन्नि पातिक भाव कहीजे. तिहां पेहेला उपशमभावना दोय भेद For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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