SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 696
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मग्रन्थस्य टबार्थः ६७१ mrrrr-~~ __ अर्थ--सूक्ष्मसंपराय १०, गुणठाणा ताई सत्ता अने उदय पण आठ कर्मनो छे. सदा सर्व कर्म छै. मोहनी विना बारमा गुणठाणे सात कर्मनी उदय सत्ता छे. तेरमे चौदमे गुणठाणे ए बे गुणठाणे वेदनी १, नाम १, गोत्र १, आउखो १, ए च्यारनो उदय ने सत्ता छे. उपशांतमोह गुणठाणे उदय सात कर्मनो छे. सत्ता आठ कर्मनी छे. ॥ ६३ ॥ उइरंति पमत्ता, सगट्ठ मीसट्ठ वेअ आउ विणा। छग अपमत्ताइ तओ, छपंच सुहुमोपणुवसंतो ॥६४॥ अर्थ-उदीरणा कहे छे-मिथ्यात्व, सास्वादन, अविरति, देशविरति, प्रमत्त, ए पांच गुणठाणे सात अथवा आठकर्म उदीरे छे. मिश्र मुणठाणे आठकर्म उदीरे छे, सदा उदीरणा छे अप्रमत्त, अपूर्वकरण, अने बादर गुणठाणे वेदनी, आउखोविना ६ कर्म उहीरे छे. सूक्ष्मसंपराय गुणठाणे छ कर्म, पछी मोहनी खपावे पछी पांच कर्म उदीरे छे. उपशांत मोह गुणठाणे पांच कर्मनी उदीरणा छे. ॥६४॥ पण दो खीण दुजोगी, णुदीरगुअजोगि थोव उवसंता। संख गुण खोण सुहुमा, अनिअट्टि अपुव सम अहिआ६५ अर्थ-हवे क्षीणमोह गुणठाणे पेहेलां पांच कर्म उदीरे छे. पछी ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, अंतराय, ए ३ तीन खपे तिवारे दोय २, नी उदीरणा छे. सयोगी गुणठाणे दोयनी उदीरणा छे. अयोगी गुणठाणे उदीरणा नथी. हवे गुणठाणे अल्पबहुत्व कहे छे-उपशांत ११, अगीयारमे गुणठाणे थोडा जीव छे. उत्कृष्टे ५४, चोपन जीव लाभे छे. तिणसु क्षीण For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy