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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ते स्वदया बंधहेतु परिणति निवारी स्वरूप गुणने प्रगटपणे करवा. जे गुण प्रगट थयो ते राखवो एटले ज्ञाने करी मिथ्यात्व टाली आपणा जीवने निर्मल करे ते निश्चयथी प्राणातिपात विरमण त कहियें. २ मृषावाद विरमणत्रत कहे छे. जुढं वचन बिलकुल बोलकं नही ते व्यवहार मृषावाद विरमणत्रत अने जे पर पुनलादिक वस्तुने आपणी कहेवी ते मृषावाद वचन छे अने जीवने अजीव कहे तथा अजीवने जीव कहे इत्यादिक अज्ञान भाव ते सर्व निश्चय मृषावाद छे अथवा सिद्धान्तना अर्थ खोटा कहे ए मृषावाद जेणे छांड्यो ते निश्चय मृषावाद विरमणवत कहियें, एटले बीजा अदत्तादानादिक व्रत जो भांजे ( भांगे) तो तेनो मात्र चारित्र भंग थाय पण ज्ञान दर्शननो भंग न थाय अने जेणे निश्चय मृषावादनो भंग करचो तेणे समकित तथा ज्ञान अने चारित्र ए त्रणेनो भंग करचो. तथा आगममां एम कां छे जे एक साधुयें चोथो व्रत भंग करयो अने एक साधुयें बीजो मृषावाद व्रत भंग करचो तो जेणे चोथो व्रत भंग करचो ते आलोयण लेइ शुद्ध थाय पण जे सिद्धान्तना अर्थनो मृषा उपदेश आपे ते आलोयण लीघे पण शुद्ध थाय नही. ३ अदत्तादान विरमण व्रत कहे छे. जे पारकुं धन वस्तु छुपावे चोरी करे ठगबाजी करी लीये ते चोरी छे, एटले पारकी वस्तु धणीना दीधा विना लेवी नही ए व्यवहारथी अदत्तादानविरमण व्रत जाणवुं अने जे पांच इंद्रियना वीस विषय, आठ कर्मवर्गणा इत्यादिक परवस्तु लेवी नहीं तथा तेनी वांछा न करवी ते आत्माने अग्राह्य छे माटे ते निश्चयी अदत्तादानविरमण व्रत कहियें. इहां कोइ पूछे जे विषयनी For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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