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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ ध्यानदीपिका चतुष्पदी. चढे गुणश्रेणि असंख गुण नित वधे, कर्मदल विहचिने तास नासन धरे; दशम गुण लोभनो क्षय करी बारमे, गुण चढी कर्म घाति भणी ते मे. ११ तेरमे थानके केवलज्ञानने, दरसण चरण वीरज्ज अनंतने; पूर्व नवि लद्ध ते गुणचतुष्टय लही, देव सर्वज्ञ भगवान ते सुख मही. १२ जेहना नामयी कर्मबंधन गले, जन्ममरणादिविनु सिद्धसुखने मिले; अगम अगोचर ज्ञानसंपद धरे, शेष अघाति चोकर्म हिव क्षय करे. १३ मास छ शेष आयुष थकां जे लहे, केवल ते समुदघात निश्चय वहे; आयुथी वेदनीकर्म जो अधिक छे, तो समुदघातने आदरी शिव गछे. १४ चवदह राजनो दंड पहिले समे, बीय कपाटमंथाण तीजे समे; भुवन पूरे सह आत्मपरदेशथी, समे चोथे जगव्यापक आपथी. १५ कर्मचतुष्कने सम करी केवली, ते वली संहर आत्मप्रदेशावली; अनुक्रमे च्यारविधि योसमे संहरे, अड समयमांहि त्रय समय नवि आदरे. १६ दूहा. कोय करे को नवि करे, समुद्वात विधि एह ज्ञानी धर्म वदे इशो, स्यादवाद गुणगेह. द्रव्य क्षेत्र काल भावथी, निजरूपे सहि अस्ति; परादिक देवता, नास्ति सहित सदु वस्तु. एक्स दोउं अछे, अस्तिनास्ति तिण थाय; अक्तव्य चोथो तिणे, जे एकसमे न कहाय. अव्ययुत भंगवय, मेल्या भांगा सातः सूक्ष्मनिगोदयी सिद्ध लगि, सप्त भंग थिर घात. १२० For Private And Personal Use Only २
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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