SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 596
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. ५७१ पछै बीय चोकडीबले तिय चोकडी, उपशम्यां प्रकृति इम ता सुपरह झडी: २ पछै हास्यादि छ उपशमै तेहने, प्रथम द्वय वेदने तेह मुनिवर व, पछे उदयागत वेद तस उपशमैः उपशमै नवमगुण संज्वलत्रिक तिहां, दशम गुण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हम पिण लोभ उपशमै जिहां. ३ चढे इग्यारमे थान निज ज्ञानथी, थाय उपशांत जिन शुक्लनिज ध्यानथी, चरण अहक्खाय गुण पाय वसि कलनै, के मरे के पडे मोहने झाल. ४ जै मेरे ते टिकै आय समकितगुणे, एग अवतार सव्व सिद्धे धुणे, जे पडे ते टिके सग छग पंचमे, कोय चउथे निये होइ पहिले रमे. ५ भाव पंचे हवे शुक्ल पहिलो स्मरे, च्यारस सहु कालने इकभवे दो करे; सर्वश्रुतिजाण मुनि शांत मुनि सेवरी, ध्यान ध्यावे तिको आत्मगुण आदरी. ६ ध्यान सवितर्कथी जीप कषायने, ध्यान एकत्वसवितर्क गुण ध्यायने; चित्त निर्मल करी ध्यान सुपृथक्त्वथी, ध्यान एकत्व ध्यावे निज सच्चयी. शुक्ल बीय पाय ध्यावे अछे क्षायकी, निरमल केवलज्ञाननी जसु वकी; एक निज आतमा त्रिगुणनी एकता, व्यान ध्यातातणी एकता थिरता. ८ द्रव्य पर्याय एकत्वथी जे धेरै, निश्चल द्रव्य एकत्वथी जे धरे; शुक्ल एकत्वता ध्यान अभ्यासथी, पामे केवल कर्मना नाशथी. ९ श्रेणि आरोहिने क्षपक कोई मुनि, करे अपूरवपणे गुण कर्मनी; कोडि थिति घात करि महूरत थिति करे, छेदि अनंतर सभाग अंतिम वरे. १० ११९ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy