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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५० ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. दोय प्रमाण निक्षेपा चारथी रे, सातनये युत ए स्याद्वाद रे; हेतु युकति करि ते हणवो नही रे, जिनवर न वदे कूडावाद रे. ध्यान० २ स्वाभावि स्वाधीन त्रिकालमे रे, ए छे गुणपर्याय अनंत रे; आज्ञाना सिद्ध द्रव्यने मानितू रे, व्यय उत्पादन गुणवंत रे. ध्यान० ३ श्रुत ज्ञान निरमल जिनवर दाषीयो रे, शब्द अर्थ यूं नित्यचितार रे; शुद्धाशुद्ध द्रव्य जाणे सहु रे, तेह शक्ति जिन श्रुतनी सार रे. ध्यान० ४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वापर अविरोधी शुद्ध ए रे, निक्कलंक अनादि गंभीर रे; सर्व जाण नय उपनय युक्त छे रे, गहन अरथ मुनि बंध सुधीर रे. ध्यान० ५ रत्नकर जिमे शोभे अतिघणो रे, पद अधिकार रंगथी युक्त रे; कुमति सर्प मिथ्यातम गालवा रे; ग्रीष्म रविसम जेहनी सक्त रे. ध्यान० ६ अनुयोगादिक चउ भेदरे; अनादि अछे गत छेद रे. ध्यान० त्रिभुवन पूज्य शुद्धि कर आत्मनो रे, जसु द्रव्यार्थिक पर्यायनये करि रे, सादि नय निक्षेप करी कवटी समो रे, कुमति भुधर भंजणहार रे; उत्तम संत मुनिने ध्येय छे रे, आगम जलधि अनंत अपार रे. ध्यान० त्रिभुवन पूज्य जन्म भय क्षय करे रे, स्यात्पद लक्षण युत व्येय रे; उत्पादादिक युत षद् द्रव्य छे रे, जिन भाष्यो श्रुत ए शिव देय रे. ध्यान० ९ ९८ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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