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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 राजसार मतिसागाक, जय इंद्री मदरो ध्वानदीपिकाचतुष्पदी. ५४९ rrior त्रिभुवन जाण तत्त्व निरुपाधि. ज्ञानानंद भर्यो; परममुनि निज आतम ज्ञानी, निज ज्ञानने उचरो. भविक० १० धर्म शुक्ल ध्यान ध्येय भेद यह, आष्यो अर्थ परो । पाठक राजसार मतिसागर, ज्ञायक निज गुणरो. भविक० ११ आतमज्ञान धरम गुणवाचक, जय इंद्री मदरो राजहंस जिम भेद जामधर, चेतन अर तनरो. भविक० १२ अक्षर त्रय गुणसुं करि थिरता, ध्यान ज देवचंद्ररोः । आतमज्ञान आनंदसिंधूर चहि, अक्षय सुख वरो. भविक० १३ इति श्रीज्ञानाचे योगप्रदीपाधिकारे ढालभाषाबंधे पंडितदेवचंद्रमुनिविरचिते स्थाननेवारूपणाभिधानो नाम चतुर्थः खंडः संपूर्णः ॥ भविक० १२ पंच महाव्रत जिम मिल्या, शिव सुखना दातारः जिम पंचम षंड सांभल्या, अक्षय सुख आधार. १ मोह अज्ञान कदाग्रह, तत्वदृष्टि न रहाय, शुद्धातम जाण्या विना, निज तत्त्व थिर नवि जाय. २ मन थीरथी साक्षात हे, शुझातम स्वभाव, लक्ष थूल सालंबधी, सूक्ष्म निरालंब भाव. आझापाय विपाक वलि, लोकस्थिति आकार; इसे विवेके भावना, धर्म ध्यान चौधार. ढाल-बेबे मुनिवर विहरण पांगुयाँ रे ए देशी. ध्यान धरमरो धिरज धरि धरो रे, आज्ञाविचय सुनाम रे; वसु तत्त्व सिद्धांते ले कथा रे,ध्यावे माने चिरपरिणाम रे. ध्यान १ ९७ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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