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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३६ ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. जन्नने मध्यम वाम नाडे चलत दहन समीर ए, जल भूमि दक्षण नाडि चलतां मध्य फल कह्या धीर ए शशि शूर नाडी दाहत्रय त्रय कही शस्यसुलक्षणा, सितपक्ष वामा उदयकाले कृष्णपक्षे दक्षिणा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रनाडे रे उदय अस्त रविमे भलो, ए उवै रे पवन विपर्यय गुणनिलो; सितपक्षे रे प्रातसमे पडिवातणे, वामनाडे रे पवन चार सुष गण भणे; गण भणे ते विपरीत वहती प्रथम दिन मन भय करी, धन हाणि बीजे दिवस तीजे पंथ देशांतर चरी; अतियुद्ध अर्थविनास विभ्रम दुःख थान विकार ए, दे दिवस पांच लगे चलतो पवन पूठे चार ए. हां प० वाम नाडे रे अमृतमय हितकारणी, प्राणीने रे रविनाडी सुषवारणी; वामनाडी रे अमृत जेम तनु सुष धरे, तिम दक्षण रे सितपक्षे वर सुष करे; सुख करे ते संग्राम भोजन सुरतकार्ये दक्षिणा, मन इष्ट उत्तम धर्म कार्ये वाम नाडि विचक्षणा; करलिप्रश्ने रे पूर्ण नाडि पृच्छकतणो, जय शून्ये रे वामे पर रिपुनो गिणो; पंडितनो रे नाम लेय निज ले पछे, तो सीझे रे कारिज विपरीतें न छे; ८४ जे काज ग्रहगण थकी न थाये तेह वामामे रह्यो, क्षिति वरुण तत्त्वे पवन राजा सर्व सुष साधक को. हां सर्व० ८ For Private And Personal Use Only ६
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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