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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. AAAAAAAAAAAAAAor अचल सौख्य अव्यय पद तेहने, जे उपशम गुण धामी रे; तेय जगत्रय शुभाशुभ रूपी, गृह आतम गुण स्वामी रे. उप० ४ क्रूर जंतु पण वैरि तजे निज, मुनि उपशम परसादो रे; पशु पिण मित्राई करे, तजि मच्छर विषवादो रे. उप० ५ क्रूर जंतु भय सहु टले, सम संगे घन जिम दाहो रे, निर निरमल मन थाये बली, आसू जल जिम वाहो रे. उप० ६ ग्रह जक्ष सुर नर भय टाले, सिंह सरभ भय जायो रे रोग वैर बंधन टाले, उपशमतणे सहायो रे. उप० ७ शशि रवि धरणी वायु ए, छे जगमे उपकारी रे, एथी पण अधिको अछे, मुनिवर शम अधिकारी रे. उप० ८ हरि हरिणी भेलां रहे, तिम हंस बिलीने रंगो रे नाग मोर भेला रहे, शमधारी मुनिने संगो रे. उप० ९ के वंदे नंदे कोइक वली, के मारे को पूजे रे, तो पिण समदृष्टि जे मुनि ते, निज स्वभावने पूजे रे.उप० १० पुर वन कनक दृषद अहि माला, शील शय्यादि अनेको रे; सुष दुष बेऊ जे सम जाणे, ते समधारी छेको रे. उप० ११ गृह स्मशान निंदकने वंदक, कुंकुम कर्दम लेपो रे कंटक कुसुमतणी शय्या जसु, शम मुक्ताफल सीपो रे.उप० १२ दिव्यरूप नारी जग प्यारी, देषी मन नवि चाले रे, अनुपम उपशम लीलविलासी, शुद्ध शिव निज भाले रे. उप० १३ मेरु चले पण उपसर्ग योगे, न चले मन शम धारो रे .. प्रांत मूढ सुतो मदमातो, मुनि जाणे जग सारो रे. उप० १४ सुरगुरु पिण उपशमनी महिमा, पूरण न शके दाषी रे पाठक राजसार गुणसागर, शुद्ध अर्थना भाषी रे. उप० १५ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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