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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१० व्यानदीपिकाचतुष्पदी. दाल -- ओलगडीनी ॥ भावन भावन भवियण हवी भावज्यो रे, भाजे भवदुष जेहा करम करम पीडजे मुझनी ना गमे रे, शुद्ध मित्र मुझ तेह. भावन० : १ घातकर जे छे आतम गुणतणा रे, तीयां पोष्यां किम सुष; उपशम र आदरी तजि क्रोधादिने रे, जे शिवगम अभिमुष. भा० कुवचन २ परना मुषथी सांभली जी, मुनिवर घ्यावे एम; नहण्योर मुझने जो हणीयो इणे रे, पिण न लीया गुणहेम. भा०३ संयम गुणने दाहे क्रोधए रे, तो सी जीवत आस भोगवतार निज कीधे कर्मने रे, सुप दुष कारण तास. भा०४ मुझनेर रोष वधे तो फेरस्यो रे, पंडित अने अजाण; उदय करम आये दुष उपजे रे, रोष करे नवि जाण. भा०५ भोगवि२ पूरव दुष मन स्थिर करी रे, मत कर को आलोच; उपसम२ नास करे अति क्रोधयी रे, अज्ञानी अति सोच. भा०६ संकट२ अति आयां रूसे नही रे; जाणि कर्मनो घेर; कंटकर पीड्यां जो उपशम तजे रे, तो क्रोधी स्यो फेर. भा०७ बंधन२ क्लेश मिल्यां सपरूं थयूं रे, थास्ये कर्मनो छेहः पूरव २ उपसम ज्ञान परीक्षा रे, आव्या छे दुष एह. भा०८ उपसम२ छोड भजे जे क्रोधने रे, तत्रु स्यो ज्ञान सुजाण; निर्जर २ करवा सहेजे कर्मनी रे, सहो परीषह बाण. पंडित २ क्रोध करे पर ऊपरे है, तो स्यो मूरष दोषः मानव २ मातो जे संसारमे रे, रागद्वेष दुष कोस. पर प्रति २ बोधक गुण तुममे नही रे, पिण मत मूझो आप परविष २ हरन सके पिण आपने रे, कोण करे विषवाप भा० ११ मानव २ दोषी परी रूठा थई रे, अरु धरतां उपसम भाव, उत्तम २ सुष दायक ते ओलषी रे, आदरिज्यो धरि चाव. भा० १२ भा० ९ भा० १० ५५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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