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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. ५०९ अक्षर शुक्र अमूरती, देव निज सेव नितमेव रे; दीपतो आतमज्ञान , कल्पनातीत निज देव रे. साधु० १८ शुक्र आनंद चिद्नेह जे, नित्य अनंत निरोग रे जग तजि ए वस्तुना रागीया, तेहथी जास नही जोगरे. साधु० १९ त्रिभुवन हेय छे जेहने, हेय छे सर्व परभाव रे; लोक अलोकने देषतो, अनुभवे निज शुद्ध भाव रे. सावु० २० परम आतमतणे ज्ञान , नवि लषे ते किसी रीत रे; अनुभवो आत्म अनुभूतथी, परम आनंद गुणमीत रे. साधु० २१ जन्मभ्रम मूक साहस धरी, धारज्यो शुभ गुण धाम रे; शुद्ध निश्चय गुण आगलो, राजविमल सुष ठाम रे. साधु० २२ . संयम उपशमने दहे, एह क्रोध वड आग; ज्ञानादिक गुण कोसने, दूर गमावण लाग. संयम अमृतने करे, विष सम एह कषाय; ज्ञानादिक गुणने दहे, एह क्रोध दुषदाय. क्रोध दहे निज धर्मने, दहे आगि तरु जेम; आप तपे पर तापवै, क्रोध अंध गतषेम. क्रोधे मुनि नरगे पडे, उभय लोक दुषवाह; क्रोधे द्वीपायन ऋषी, कीयो द्वारिकादाह. पाप नरक अपकारनो, कारक गुण रिपु रोष; काल अनादि कषाय ए, राहु समो दुष पोष.. क्रोध जीप शम ग्रहो, लहि जैनागम वाण; क्रोध तजो समजल अजो, संयम गुणनो ठाण. कीये मुनिवर क्रोक्ने, उभव लोक दुषहः रोषपोपने टालवा, भजिज्या भावना एह. . ५ . ६ G. For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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