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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. अभयदान जंतु जिण दीयो रे, दीया दान अनेक जिम जिम करुणा थिर दुवै रे, आवै तेम विवेक अपारै. कष्ट पड्यां करुणा न विसारै, जीवदयाथी सुष जस सारें; अनेक भवार्जित कर्म निवारे जी. ११ सां० भवमें कष्ट कष्ट दोहाग जे रे, ते हिंसाथी होय; ज्योतिष में रवि शशि वडा रे, सुमनसमी हरी जोय; सुमनसमें हरि जोय सदाई, गिरि मंदिर तरु कल्प वडाई; देवचंद्र जगनाथ कहाई, तेम दया धर्म्म सहनी याई जी. १२ स० ! दहा. हिव बीज व्रत सांभलौ, शिवसुषनो दातारः सत्य वचन पादप तुम्हे, पालो संजम धार. जीवतणी रक्षा भणी, कूडतिको पिण साच जीव हणायै जिण थकी, दूर टाल ते वाच. तपथि जे दुष नवि गम, तेह गमावै एहः हिंसा आकूलता रहित, सत्य वचन गुणगेह. कैतो मोनपणौ भलौ, जो बोलै तो सत्यः भव कारण वच झूठ ए, भवियण टालै नित्य. मिथ्याग्रथ कदाग्रही, बदै झूठ खल लोय; स्याद्वाद सुणि वैण जै, दावे मुमिधन सोय. झूठ वचन विष सम कौौ, "मारे भव भव एह अइसो सुष कोई नही, बधे झूठथी जेह. कहियौ सुणिवो पिण नही, वचन पापनो धामः धर्म विरोधक नवि वदे, गुणी वचन बेकाम. धन्य तिकेइ ज मुष थकी, सत्यवचन भाषंत; जिन शासन कारिज पड्यां, सुषथी झूठ कहंत. ३५ For Private And Personal Use Only भ ४८७ १ ३
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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