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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. གབཀའའབག་འའའཐའགའ་ G. 1 राग द्वेष राक्षस थकि, भय नवि पामै जेहा नारिथी मन नवि चले, अक्षय निजरस गेह. ५ तप दीपकनी ज्योतिथी, बाल्या कर्म पतंगः । ज्ञान राज्य त्रय लोकनो, विलसे जेह निसंग. ६ तपथी तनने पीडवे, उपशम रस भंडार; लोक सर्व सुखकारजे, मोह अगनि जलधार. ७ निज स्वभाव आनंदमय, शांत सुधारस ठाम; योग महागज जोपने, व्रतधारी समधाम. ढाल-तार कर तार संसारसागरथकी. एहनी. महा समधार सुखकार मुनिराय जे,ध्यान ध्यावा भणी जोग थावे; देह आधार संसारसुख निस्पृही, तेह जोगीस निज देव पावे. १ म० शुद्ध ज्ञानरसपानथी शांत मन, थावर जंगम दया धारी; मेरु जिम अचल आकाश जिम निरमला, पवन जिम संग विणु लोभ वारी. २ म० भव्यसारंग सुषकार उपदेशयी, देह शोभा तजी मोक्ष साघे; . ज्ञान शक्ति करी आतम निज ओलषे, शुद्ध निज. ध्यान ते मुनि आराधे. ३ म० एण निज देवने मोक्षगृह चढणने, कही सोपानसम साधु सेवा; ध्यान ते साधुने मोक्षकारण कयौ,विमल विख्यात निजगुण वहेवा.४म० दांत मन विहग इंद्री भणी जे दमे, ज्ञानना गेह पातक विडारे, कर्मदल गंज नै चित्त निरमल थका, एम जोगीश शिव मग सुधार. ५ म० गिरि नगर कंदरा गेह शय्या शिला, चंद्रकर दीप मृग संग चारी; ज्ञान जल तप अदन शांत आत्मा थका, धन्य निग्रंथ सुविहित विहारी, ६ मा For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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