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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir raruRinnina nirnarmun........arrrrrrrroriwwwmnain. श्रावकनो आचारः जाणीमे कहे जे अमे ज्ञानी छैये ते पण ज्ञानी नथी पणा जे द्रव्यः गुण पर्याय जाणे तेने ज्ञानी कहिये. श्री उत्तराध्यपने मोक्ष मार्गे कह्यों छे. गाथा " एवं पंच विहणाणाणां दवाणय गुणाणय, पज्जवाणय सहोसिं, नाणं नाणी हि दंसियं ॥१॥. माटे वस्तु सत्ता जाण्या विना ज्ञानी समजवू नही अने नवतत्व ओलखे ते समकीति अने एहवा ज्ञान दर्शन विना जे कहे के अमे चारित्रिआ छैये ते पण मृषावादी छे कारण के श्री उत्तराज्ययन सूत्र मध्ये कर्तुं छे.जे “ नाणं दसण नाणं नाणेण विना न हुंति चरण गुमा ” ए वचन छे ते माटे आज केटलाक ज्ञानहीन क्रियानो आडंबर देखाडे. छे ते ठग छ तेहनो संग करवो नही. ए बाह्य करणी अभव्य जीवने पण आवे माटे ए बाह्य करणी ऊपर राचवू नही अने आत्मानुं स्वरूप ओलख्या विना सामायक पडिकमणा पञ्चख्खाण करवां ते सर्व द्रव्यनिक्षेपामां पुण्याश्रव छे पण संवर नथी. श्रीभगवती सूत्र मध्ये कयुं छे के “ आयाखल सामाइयं " ए आलावाथी जाणजो तथा जीव स्वरूप जाण्या विना तप संयम पुण्य प्रकृति ते देवताना भवतुं कारण छे “ पुव तवेणं पुव्व संयमेणं देवलोए उववज्जति नो चेवणं आयत्ता भाववत्तव्वयाए" ए आलावो भगवतीमां कह्यो छे, तथा जे क्रियालोपी आचार हीन अने ज्ञानहीन छे मात्र गच्छनी लाजें सिद्धान्त भणे वांचे छे व्रत पञ्चरुवाण करे छे ते पण द्रव्य निक्षेपो जाणवो. एम श्री अनुयोगद्वारमा कयुं छेः सेकिंतलोगुतरिअंदवावस्सयंः ? जे इमे समण गुणमुक्कजोगी छक्वाय निरणुकंपा ॥ हयाइव उद्दामा ॥ गयाइव निरंकुसा ॥ घट्टामट्ठातुप्पोठा ॥ पंडुरपडयाउरणा जिणाणमणाणाए सच्छंद विहरिउम उभओकालं आवस्सयस्स उबलुति ॥ सेतं लोगुस्तरिय दयावस्त्यं ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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