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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आगमसार. २३ चित्रामनी मूर्ति ते हिंसाना परिणामयी फाडे तेहने हिंसा लागे छे तेमज जिनवरना घ्याने जिनप्रतिमा पूजतां लाभ थाय छे एम युक्ति करतां तथा आगमनी साखे पण जिन प्रतिमाने जिनसमान माने ते आराधक अने जे जिन प्रतिमाने न माने तेणे स्थापना निक्षेपो उथाप्यो अने स्थापना उथापी तो द्रव्य तथा भाव निक्षेपो स्थापना विना थाय नही माटे द्रव्य तथा भाव पण उथाप्यो एम त्रण निक्षेपा उथाप्या ते वारें सिद्धान्त उथाप्यांज माटे जे जिनप्रतिमाने नही माने ते विराधक जावो ते स्थापना इतर अने यावत्कथिक ए बे भेदें छे. ३ द्रव्य निक्षेपो कहे छे, जेनो नाम पण होय तथा आकार थापना गुण पण होय अने लक्षण होय पण आत्मोपयोग न मिले ते द्रव्य निक्षेपो जाणवो एटले अज्ञानी जीव ते जीव स्वरूपना उपयोग विना द्रव्य जीव छे “अणुवओगोदवं " इति अयोद्वार वचनात् वली कं छे जे सिद्धान्त वांचतां पूछतां पद अक्षर मात्रा शुद्ध अर्थ करे छे अने गुरुमुखे सदहे छे ते पण शुद्ध निश्चये पोतानी सत्ता ओलख्या विना सर्व द्रव्य निक्षेपामा छे. जे भाव विना द्रव्यपणो छे ते पुण्यबंधनुं कारण छे पण मोक्षनुं कारण नथी एटले जे करणी रूप कष्ट तपस्या करे छे अने जीव अजीव पदार्थनी सत्ता ओलखी नथी तेने भगवती सूत्रमां अवती तथा अपञ्चख्खाणी कह्या छे, तथा जे एकली बाह्य करणी करे छे अने पोते साधु कहेवाय छे ते मृषावादी छे एम उत्तराध्ययन सूत्रमां कयुं छे " नमुणी रन्नवासेणं" ए वचनें " नाणेण य मुणी होइ" ए वचनथी जे ज्ञानवान् ते मुनि छे अने जे अज्ञानी ते मिथ्यात्वी छे. तथा कोइक गणितानुयोगना नरक देवताना बोल अथवा यति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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