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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. wwwwww गरभ जनम मरणादि वलि, सुष दुष जोग वियोग; जीव इकेलो भोगवै, आधि व्याधि सह सोग. ढाल-नायक मोह नचावीयो. एहनी. भावो एकल भावना, संग न कोइ संसारो रे इंद्र चंद्र नागेंद्र को, अंते नहि आधारो रे. १ भा० पाप करे परजन भणी, नरक दुष तूं पामे रे पावणवेला सहु मिले, दुष मंडे तुझ नामे रे. २ भा० जन्म मरण तूं भोगवे, एक थको अयाणो रे . आप सरूप जाण्या विना, जीव भमे विण नाणो रे. ३ भा० मोहवसे ए एकलौ, चंचल धन वर प्रांतो रे बंधे आपोआपने, कुलीया वड दृष्टांतो रे. ४ भा० एकपणो जे आदरै, पामी आपस्वभावो रे जन्म मरण दुष तो टले, तजि रागादि विभावो रे. ५ भा० कोइ दिव्य सुष भोगवै, केइ नरक दुष धावे रे. को क्रम बांधे क्रोधथी, के सह कर्म धपाइ रे. ६भा० ए चेतन ए देहथी, ज्ञानरूप मिन्नत्व; बंधादिक निजगुण नही, भाषो भाव अन्यत्व. १ पुनरपि ढाल. पुद्गल जीव अनादिनो, बंध ज एक ज होई रे कनक उपल जिम एकता, निश्चय जूआ दोय रे. . भावो अन्यत्व भावना, आंकणी. For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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