SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. भाग नथी पण अविभागी जे ज्ञानादिक गुण. तेमां अनंता कारणधर्म अनंता कार्यधर्म ऊपजवानी योग्यतारूप सत्ता.छे ते सर्व अवक्तव्यरूप छे. हवे परम स्वभावनुं स्वरूप कहे छे. सर्व जे धर्मास्तिकायादिक पदार्थ तेना विशेष गुण जे धर्मास्तिकायनो चलन सहकारीपणो तथा अधर्मास्तिकायनो स्थितिसहाय आकाशास्तिकायनो अवगाहक तथा पुद्गल द्रव्यनो पूरणगलन, जीव द्रव्यनो चेतना लक्षण, ए सर्व द्रव्यना विशेष गुण कह्या. एम लक्षणरूप तथा द्रव्यांतरथी मिन्न पाडवानुं मूल कारण ते परम प्रकृष्ट गुण कहिये. ए प्रधान गुणने अनुयायी बीजा जे साधारण गुण ते गुण पंचास्तिकायमां पामिये. ते नामना अविनाशीपणो, अखंडपणो, नित्यत्वादिक कर्म ए पंचास्तिकायने सरिखा छे ते माटे साधारण गुण तथा पंचास्तिकायमां कोइक अस्तिकायमां पामियें. कोइकमां न पामिये ते गुणने साधारण असाधारण कहिये, ते सर्व गुणने विषे विशेष गुणने अनुयायि प्रवर्ते छे ते प्रवर्तनना कारण द्रव्यमां एक परमस्वभाव पणो छे, ते परमस्वभावने परिणमने द्रव्यना सर्व गुण मुख्य गुणने अनुगमे ज प्रवते. ते परमस्वभाव सर्व द्रव्यने विषे छे एटले तेर सामान्य स्वभाव कह्या. वली अनेकांतजयपताकामां कह्या छे. तथास्तित्व, नास्तित्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, असर्वगतत्व, प्रदेशवत्वादिभावाः पुनः तत्त्वार्थटीकायां पुनरप्यादिग्रहणं कुर्वन् ज्ञापयत्यत्रानन्तधर्मवत्वं तत्राशक्ताः प्रस्तारयन्तु सर्वे धर्माः प्रतिपदं प्रवचनस्वेन पुंसा यथासं For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy