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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. शांश अवगाहे एम असंख्याता प्रदेश अवगाहे छे पण एक वर्गणानी अवगाहना अंगुलने असंख्यातमें भागे अवगाहे वधति अवगाहे नही अने अनंति वर्गणा मिले अंगुल हाथ गाउ योजनादिकने माने अवगाहना थाय एम ए १ धर्मास्तिकाय २ अधर्मास्तिकाय ३ आकाशास्तिकाय ४ पुद्गलास्तिकाय ए चारे द्रव्य अचेतन छे अजीव छे जाणपणा रहित छे. चेतनालक्षणो जीवः, चेतना च ज्ञानदर्शनोपयोगी अनन्तपर्याय परिणामिककर्तृत्वभोक्तृत्वादिलक्षणो जीवास्तिकायः। अर्थ ॥ हवे जीव द्रव्यनुं स्वरूप कहे छे चेतना जे बोध शक्ति छे लक्षण जेनुं ते जीव कहिये. जे पोताना परिणमन तथा परनी परिणमन सर्वने जाणे ते जीव तथा सर्व द्रव्य ते अनंता सामान्य स्वभाव अने अनंता विशेष स्वभाववंत छे तेमां सर्व द्रव्यना अनंता विशेष धर्मर्नु अवबोधक ते ज्ञानगुण कहियें, तथा सामान्य विशेष स्वभाववंतवस्तुने वि जे सामान्य स्वभावतुं अवबोधक ते दर्शन गुण कहिये. ते ज्ञानदर्शनोपयोगी जे अनंतपर्याय तेनो परिणामी कर्ता भोक्तादिक अनंति शक्तितुं पात्र ते जीव जाणवो. उक्तं च “ नाणं च दसणं चेक, चरित्तं च तवो तहा ॥ वीरियं उबओगो अ, एवं जीवस्स लक्खणं ॥१॥ चेतना लक्षण ज्ञानदर्शन चारित्र सुखवीर्यादिक अनंत गुणर्नु पात्र स्वस्वरूपभोगी तथा अनवच्छिन्न जे स्वावस्था प्रगटी तेनो भोक्ता अनंता स्वगुणनी जे स्वस्वकार्यशक्ति तेनो कर्ता, भोक्ता, परभावनो अकर्ता, अभोक्ता, स्वक्षेत्रव्यापी For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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