SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1045
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२० गुणठाणाअधिकार. अन्य सर्व मिथ्या, श्रीवीतरागे कह्यो निग्रंथे आचर्यों समकिती जीवे सदह्यो श्रीगणधर देवे आगम मध्ये गुंथ्यो शुद्ध धर्म माहरो तथा सर्व जीवनो हित छे ते माहारे प्रमाण ते सद्दहवो. ते जाणवो ते आदरवो ते नीपजाववो. जे समये समये गुणस्थान चढी कर्मक्षय करी संलेशी अंते पोतानी सिद्ध संपदा प्रगट थास्ये ते समयसार मानवो अने जेने ए मारगनी परतीत प्रगटी तेने शरणे रहेवो तथा साध्य शुद्धसत्ता साधन गुणठाणे चढी ते रत्नत्रयी परणमवी ए मार्ग माहरो सदा अविहड होज्यो इति ॥ ॥ दूहा ॥ परम अध्यात्मने लखे, सद्गुरुकेरे संग; तिणकुं भव सफलो होवे, अविहड प्रगटे रंग. १ धर्मध्यानको हेत यह, शिव साधनको खेत; ऐसो अवसर कब मिले, चेत सके तो चेत. २ वक्ता श्रोता सम मिले, प्रगटे निजगुणरूप; अक्षय खजानो ज्ञानको, तीन भूवनको भूप. ३ एह पत्र अनुपहे, समझे जे चित्तलाय; देवचंद्र कवि इंम कहे, निज आतम थिर थाय. ४ इति अढार पापस्थान जाणवा. सारु. हवे छठो गुणठाणो प्रमत्त साधु एहवे नामे कहीये जे प्रत्याख्यानी चोकडीनो उदय टल्यो सर्व विरति प्रगटी, संयम साधन माटे पौद्गलिक भावे ग्रहेपण पुद्गलने भोगिपणे पुद्गलीक थाय नही. स्वरूपरमणी आत्मधर्म थिरता रुप सर्वपरभाव उपर अग्राहकतारूप चारित्रधर्म प्रगट्यो छे ते साधु उत्सर्ग अपवाद मार्गेपंचमहाव्रत पाले छे, तिहां द्रव्यभाव पंच महावत सहित पांच समिति तीनगुपतिना दश For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy