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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १००८ गुणठाणाअधिकार, आकरो छे तेणे समाकितमां अतिचार लागे छे तेहने क्षयोपशम समकित कहीइं, एहनी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त छे उत्कृष्टि ६६ साछठिसागरोपम केतलाएक मनुष्यभव अधिक एतली स्थिति रहे ए समकितने पांच अतिचार लागे तेहनां नाम ॥ संका जे आगममां कह्यो ते साचो पिण कांईक संदेह उपजे १, अतिचार ॥ कंखा बीजा मतना शास्त्र तथा देव हरिहरादिक सरागि तथा ते मत गुरुसविकारे तेहने काईक रुडापणे जाणि वांछा करिए २ अतिचार, वितिगछाजे धर्मअरिहंतनो कह्यो करीइं पण एहनो फल थासे के नही थाय अथवा जिन सासनथी बीजा काईक बीजा मतनी करणी रुडी छे एहवो परिणाम आवे ते त्रीजो ३ अतिचार पसंस जे परमतनी परसंसा करे जे बीजा मतना देव तथा लिंगीयाता कष्टकरणी तथा कोई चमत्कार देखीने ते उपरे राग आवे तेहने पगे लागे तेहना गुण बोले ए चोथो ४ अतिचार जाणवो ॥ संथवो जे बीजा मतना देव तथा गुरु तथा ते मतना जे सेवक तेहनो परिचय मेलाप घणो करे बीजा मतनी वात करे सांभले पांचमो आतिचार ॥ ए क्षयोपशम समकित एक जीवने असंख्यातीवार आवे अने वली असंख्यातीवारजाए, जे आगमने आधारे राखे तेहने रहे तेपछे क्षायिक समकित थाई ते क्षायिकनो अर्थ लिखीइं छे. अनंतानुबंधी च्यार ४ मिथ्यात्व मोहनी १ मिश्रमोहनी २ समकितमोहनी ३ ए सात प्रकृति सर्वथा जे जीव खपावीने निरमलीपरतीतकिधी ते क्षायिकसमकिती कहीइं. ए आव्या पछे जाय नहीं. ए समकितवाला जीवने दस जातिनी रुचि उपजे ते लिखीइं छे. निसर्गरुचि नव तत्व ९ छे द्रव्य तेहना ४ निक्षेपा सातनय पोतानी बुद्धियी For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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