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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणठाणाअधिकार. १००७ पेहलो भेद उपसमसमकित जे जीव अनादि मिथ्यात्व संज्ञी पंचेंद्री पर्याप्तो कोई कारण पामीने संसारथी उभगे नरक निगोदथी ते पामे, जनममरणना दुःखथी बीहे तेवारे ए सर्व संसार खोटो जाणे, धर्म जाणवानी रुचि धणी करे, दयापाले, दनदे, तप करे, श्रावकनां बार व्रत पाले, साधुना महाव्रत पाले ते जीव यथाप्रवृतिकरणे वर्तता कहीइं, एतली करणीसुधी भव्य तथा अभव्य जीव आवे, नवग्रैवेयकसुधी जाए पण समकित पाम्यो नथी ते माटे लेवामां नावे, तोपण कोई जीव वैराग्य परिणाम सहित संसारने असार जाणतो साचा धर्मनी परीक्षा कस्तो सातकर्मनी थीति उत्कृष्टी खपावे, एक कोडाकोडी सागरोपम बाकी थीति सातकर्मनी रहे तेवारे अपूर्वकरण करे तेवारे एक ज्ञान मार्ग साचो करी माने, बुद्धिमुक्ष्मभाव जाणवानी विशेष थाइं तेवारे पछे एक आत्मा पोताना शरीरने विषे रह्यो, पण अशरीरिछे, अरुपी छे, अविनासी छे, अनंतज्ञानमयी अनंतदर्शनमयी, अनंतचारित्रमयी,अनंतअगुरुलघुमयी, अनंततपमयी, अनंतवीर्यमयी, निर्मल अलेप अखंड छे, तेहना प्रदेश असंख्याता छे, प्रदेशे २ अनंता गुण अनंता पर्याय छे, उपयोग लक्षण ते माहरो धर्म छे, ए धर्म जे जे करतां प्रगट थाये, गुणीश्री, अरिहंत, सिद्ध, आचारज, उपाध्याय, साधु तथा सिद्धांत तेहनो विनय तथा वैयावच्च करवो, अरिहंतना आगम प्रमाणप्रतीत राखे ते समकित कहीइं, ते समकितना तिन भेद छे उपसम समकित १.क्षयोपशम समकित २ क्षायकसमकितः तिहां अनंतानुबंधिकषाये मिथ्यात्वमोहनी, मिश्रमोहनी, समकितमोहनी एसातप्रकृति उदये आवे ते खपावी अने उदये नथी आवी ते विपाकेउपसमावी छे, प्रदेसे उदये छे, समकितमोहनी उदय For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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