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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्म दर्शन. (3) पर्यायान विचित्रमनोsवस्थाः ताश्चात्मनैव प्रत्यक्षीकृत्य ततोर्थापत्यातश्चितितज्ञानं । एतानि चत्वारि ज्ञानानि मम संति तेन परंमनोविकल्पितं अहंजानामि । यत्तु पंचमं केवलज्ञानं तत्र सर्वायेतानि चत्वारि ज्ञानानि लीयंते सूर्यप्रकाशदन्यताराप्रकाशवत् तच्च ज्ञानं मम नास्ति ॥ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, अने मनः पर्यायज्ञान ए चार मने वर्त्ते छे. तेथी मनः पर्यवज्ञाने अन्य जनोना अभिप्रायने हुं जाणं हूं. 3 प्रदेशी - पोताना मनमां विचार करवा लाग्यो के अहो आ महापुरुष छे, ज्ञानी छे, तेमनी साधे संभाषण लाभार्थे छे एम चिंती बेसवानी इच्छावाळा राजाए सूरिने कहुँ, हे स्वामिन् तमारी आज्ञा होय तो हुं बेसुं. सूरिए कहुं, तमारी पृथ्वी छे जेम सुख थाय तेम कर. राजा बेसी बोल्यो- देह अने जीवनुं भिन्नत्व तमो कथों छो ते घटतुं नथी. आत्माने सुख दुःखनी अवस्थाना भेदो माटे पुण्य पापनी कल्पना करवी अने पश्चात् पुण्य पाप भोगार्थ प्रति परलोक गत्यागतिनी कल्पना करवी ते प्रत्यक्ष प्रमाणथी विरुद्ध छे. कारण के मारो पितामह अत्यंत पापी हतो, तेनो •मारा उपर अत्यंत स्नेह हतो, जो ते कहेवा प्रमाणे नरकमा गयो होय तो तेणे अत्र आवी केम पापनो निषेध कर्यो नहीं ? कारण के त्यां अत्यंत दुःख मारे भोगबवुं पडे माटे, हे पुत्र तुं पाप मा कर हुं तो पापार्जनथी दुःखी थयो एवो - , For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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