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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ()ी भने प्रदेशीनो संवाद चित्र-हे महाराज श्री पार्श्वनाथ नामना वीशमा तीर्थकरना प. रंपरागत शिष्यो छे अने ते देहथी जीव पृथक् कहे छे. प्रदेशी-हे चित्र ! ते केवा प्रकारनी युक्तिओथी शरीरथी भिम जीवनी अस्तिता कथे छे ? चित्र-हे नरपते ! एनी मने मालुम नथी तेमनी पासे गमन करी श्रवण करीए तो मालुम पडे. राजाए कयु " चालो त्यारे तेमनी पासे, एम कही आचार्य पासे जइ स्थाणुनी पेठे विनयरहीत नास्तिक शिरोमणि बेठो. प्रदेशी-तमो का कइ युक्तिओथी शरीरथी भिन्न आत्मा मानो छो? केशी गणधर-हे राजन् ! ए प्रमाणे प्रश्न पुछवाने इच्छा राखे छे . तो केम विनयनो भंग करे छे ? प्रदेशी-शुं में असमंजस कर्यु ? केशीसूरि-दूरस्थ एवा ते अमोने देखी मनमां एवं चिंतव्यु के मा मूढो मूर्खाओनी आगळ शुं असत्य बकेछे तें मनमा विकल्प कर्यो ते सत्य के असत्य ए प्रमाणे मुरिनुं वचन सांभळी राजा चमत्कार पाम्यो. मदेशी-पराभिमायने तमोए शायी जाण्यो ? सूरी-पांच ज्ञानमाथी मारा विषे चार ज्ञान छे. तत्र प्रथम मतिज्ञानं इंद्रियप्रणोदनोद्भूतं, । द्वितीयं श्रुतज्ञानं तञ्च श्रवणगृहीत पदवाक्यैरर्थावबोधरूपं । तृतीयं अवधिज्ञानं तचेन्द्रियकज्ञानव्यतिरिक्तमात्मनैव प्र. त्यक्षकृतं रूपि द्रव्यगोचरं । चतुर्थमनःपर्यायज्ञानं तच्च मनुष्यलोकवर्तिनां संज्ञिजीवानां ये मनः For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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