SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ चालि. संग्रह करत उपग्रह निज विषये शिव जाय, भव त्रीने उत्कर्षथी आचारय उवझाय; एक वचन इहां भाषओ भगवई वृत्ति लेई, एकज धर्मी निश्चय व्यवहारे दोई भेई ॥ ८८ ॥ दुहा. सूरी उवज्झाय मुनि भावि अप्पा, गुण थकिं भिन्न नहीं जेमहत्या; निश्चय ईम वदे सिद्धसेन, थापना तेह व्यवहार दैन ॥ ८९ ॥ चालि. वृत्ति सुत्त उवओगेई करण नई अत्थिं सद्द, झायति झाणई पूरई आतम नाणनी हद्द) पणि निरुतिं उवज्झाय प्राकृत वाणि प्रसिद्ध, आवश्यक निर्युक्त भाष्यो अर्थ समृद्ध ॥ ९० ॥ दुहा. भाव अध्ययन अज्जयण एणें, भाव उवज्झाय तिम तव वयणें; जेम श्रुत केवल सयल नाणें, व्यवहृतिं निश्वई अप्पझ्झा ॥ ९१ ॥ चालि संपूरण श्रुत जाणे श्रुत केवलि व्यवहार, गुणद्वारा आत्मद्रव्यनो ज्ञान प्रकार, श्रुतथी आतमा जाणे केवल निश्चय सार, श्रुत केवली परकाशे तिहां नहीं भेदवयार ।। ९२ ॥ दुहा. जोडीए जबही ते ते उपाधे, तबही चिन्मात्र केवल समाधे; तेह उवज्ञाय पदने विचारे, तेहइ एक टीप छे जगमझारे ॥९३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy