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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८९ चालि. ર 3 પ उपाध्याय वरवाचक पाठक साधक सिद्ध, ७ 20 करग झरग अध्यापक कृतकर्मा श्रुतंवृद्ध; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 १३ r १५ शिक्षक दिक्षक थविर चिरंतन रत्न विशाल, ૧૬ १७ १८ मोहजया पारिच्छक जित परिश्रम वृतमाल ॥ ९४ ॥ दुहा. ૧૦ ૧ ૨૨ ૧૩ साम्यधारी विदित पद विभाग, कुत्तियावण विगत द्वेष रागः अममादी सदा निर्विषादी, अध्ययानंद आतम प्रमादी. ॥९५॥ चालि. नाम अनेक विवेक विशारद पारद पुन्य, परमेश्वर आज्ञायुत गुण सुविसुद्ध अगण्य; नमीए शासन भासन पति पावन उवज्झाय, नाम जपतां जेहनुं नव निधि मंगळ थाय, दुहा. ॥९६॥ नित्य उवज्झायनुं ध्यान धरता, पामीए सुख निज चित्त गमता; हृदय दुर्ध्यान व्यंतर न बाधे, कोइ विरुओ न वयरी विराधे | ९७ ॥ चालि. नमस्कार उवज्झायने वासित जेहनुं चित्त, धन्य ते कृत्य पुन्य ते, जीवत्त तास पवित्त; आर्त ध्यान तस नवि हुए, नविं हुए दुरगंतिं वास, भवक्षय करतां समरतां, लहिए सुकृत उल्लास. 1196 11 दुहा. शिव पदा लंब समरथ बाहु, जेह छे लोकमां सव्व साहू; प्रेमथी तेनुं शरण कीजे, भेद नवि चित्र रीते गणी जे ॥ ९९ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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