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________________ 'स्वरलोप---- ६ स्वर पर रहेता पूर्ववर्ती स्वरनो प्रयोगानुसारे लोप थाय छ: तिअस+ईसो-तिअसांसो [ त्रिदशेशः ] नीसास उसासा-नीसासूसासा [ निश्श्वासोच्छ्वासौ ] ७ पदथीं पर आवेला 'अपि' शब्दना 'अ' नो लोप विकल्पे थाय के केण+अवि-केणपि, केणावि [ केनापि ] कह+अपि-कहंपि, कहमवि कथमपि ] कि+अपिं-किं पि, किमवि [किमपि] तं+अपि-तं पि, तमवि [ तदपि] ८ स्वरांत पदथी पर आवेला 'इति' शब्दना 'ई' नो लोप थइ 'ति' ने स्थाने ति' थाय छेः तहा+इति-तहात्ति, तहत्ति [ तथेति ] पिओइति–पिओ ति, पिउति [प्रिय इति ] पुरिसो इति पुरिसोत्ति, पुरिमुति [ पुरुष इति] ९ व्यंजनांत पदथी पर आवेला इति' शब्दना इनो लोपथाय छे: किं+इति-किंति [ किमिति] ज+इति-जति [ यदिति] दिट्ठ+इति-दिठंति [ दृष्टमिति] न मुत्तं+इति-न जुतं ति [न युक्तमिति] १० त्यदादि अने अव्ययथी पर आवेला त्यदादि अने अव्ययना आदि स्वरना प्रायः लोप थई जाय छे:---- त्यदादि-त्यदादिः एस+इमो-एसमो [ एषोऽयम् ] १ जूओ पालि. सं. नि० १ (क) पृ. ५५ । २ जूओ , , , २६ पृ० ८३ । - -
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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