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________________ जउँणा+यडं-जउणयई, जउंगासडं [ यमुनातटम् ] नई-सोत्त- नइसत्तं, नईसोतं . . [ नदीश्रोतः ] मणा+सिला-मणसिला, मणासिला [ मनःशिला] वहून मुहं-वहुमुहे, वहुमूह [वधूमुखम् ] सिला+खलिअ-सिलखलिअं, सिलाखलिअं. [शिलास्खलितम् । संधिनिषेध-- ३ .इ'ई' के 'उ' ऊ पछी कोई विजातीय स्वर आवे तो संधि थत्तो नथी अने 'ए' के 'ओ' पछी कोई पण स्वर आवे तो संधि थनो नथी... . पहावलि+अरुणो-पहावलिअरुणो [प्रभावल्यम्णः वह+अवजढो-वहुअवऊदो [वध्ववगूढः ] वणे अडइ-वणे अडइ वनेऽटति ] . अहोअच्छरिअं-- अहो अच्छरिअं [अहो आश्चर्यम् ] ४ स्वर पर रहेता क्रियापदमा स्वरनो संधि थतो नथी: .. होइ+इह-होइ इह [ भवति इहं भवतीहं ] ५ उद्वृत्त स्वर पर रहेता प्रायः पूर्वना स्वरनो संधि थतो नथी: निसा-+अरो-निसाअरो [ निशांक (च) र: १ स्वरनी साथे हेलो व्रजन लोपाया छी जे सदर थे. हे छे तेनुं नाम उद्वृत्त स्वर छे:-(असंयुक्त 'कादि' लोप-पृ० १०) २ केटलेक ठेकाणे तो उवृत्त स्वर पर रहेता पण 'संधि थई गए लो छे:--- . कुम्भ आरो=कुम्भारो (कुम्भकारः.). चक्क+आओ-चक्काओ ( चक्रवाकः ) साल+आहणो=सालाह णो (सातवाहनः) सुनउरिसो-सरिसो ( सुपरुपः )इत्यादि
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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