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________________ क्षीरार्णव अ.-१०० क्रमांक अ.-२ मूल प्रासादसे तीन भागकी करके रखना। वैसे क्रम और योगसे उसकी उपरसे अधिक नीचेकी वृद्धि करना । ६-७. - - अतन PRAMTANT PANCHAYATA!V. पंचदेवोका पंचायतन-जगती करद्वादशेधाशं शालान्यंशं द्वाविंशके , द्वात्रिंशतिश्चतुर्थाशं सा भूतांशं शताधिके ॥८॥ एव मन्यश्चकर्तव्यो जगतीनां समुच्छयं ॥९॥ (२) जगतीकी ऊँचाईका दूसरा मान भी अन्य ग्रंथों में कहा गया है। १ हाथके प्रासादको १ हाथ तक जगती करना, दो हाथके प्रासादको डेढ़ हाथ ऊँची जगती करना । तीन हाथके प्रासादको दो हाथकी चार हाथके प्रासादको ढाई हाथकी-पाँचसे बारह हाथके प्रासादको जगतीकी ऊँचाई प्रासादके अर्ध भागकी करना। तेरहसे चौबीस हाथके प्रासादको प्रासादके तीसरे भाग पर जगती ऊँची करना । पचीससे पचास हाथके प्रासादको जगतीकी शार्द प्रासादके चौथे भाग पर ऊँची करना। इस तरह दसरा मान कहा है। जगतीको सन्मुख ज्यादा रखने के लिये कहा है क्यों कि आगे देखना हो तो महोत्सव हो सके। (૨) જગતીની ઊંચાઈનું બીજું માન અન્ય ગ્રંથમાં કહે છે. એક હાથના પ્રાસાદને ૧ હાથ સુધી જગતી કરવી, બે હાથના ને દોઢ હાથ ઊંચી જગતી કરવી ત્રણ હાથના ને
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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