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________________ २९२ युक्त करना एसा चातुर्मुख धार भूमि उदयका करमा भागे माली मंडप दो तीन भूमि उद्यका वेदिका साथ करना-सर्व अग्रे पगथीकी पंक्ति करना चातुर्मुख प्रासादको एकसे नव जंघा करना चारो ओर मिश्रमेध ओर सिंहनाद मंडपो करना आठसे पंदरा हाथके प्रासादके भ्रममें दो भूमि योजना करनी एक भूमिसे बारह भूमि तक जंघा करना । - २९४ भी १४ भाग पीठ १७ भागका उचे प्रथम भूमि मंढोवर भरणी तक ४५॥ २४ दुसरी भूमि छज्जा २९ ... ... ... २९ १९ तीसरी भूमि भरणी तक २४ ... ... २४ १८ चोथी भूमि छज्जा तक २६ ... १२४॥ जंघामें लोकपाल दीगपाल देवाङ्गनाओका स्वरुप लास्य तांडवादि २९७ नृत्य ताल सह वादिन साथ करते है देवो आयुध वाहन साथ नृत्य करते है जैसेके उत्सव हो रहा हो, छ और आठ हाथवाला देव स्वरूपो इंद्र रंभाके साथ अग्नीदेव उर्वसी साथ यम तिलोचना साथ क्षेत्रपाल शची, वरुण, रंभा, वायुदेव मंजुघोषा, ईश मेनका साथ करना । प्रासादके इशान कोणसे मेनकादि देवाङ्गनाका स्वरुप करना । १. मेनका २. लीलावती ३. विधिचिता ४. सुंदरी ५. शुभांगीनी ३०१ से ६. हंसाउली ७. सर्वकला ८. कर्पूरमंजरी ९. पद्मिनी १०. गूढ शब्दा (पद्मनेत्री) ११. चित्रिणी १२. चित्रवल्लभा पुत्रवल्लभा १३. गौरी १४. गांधारी १५. देवशाखा १६. मरिचिका १७. चंद्रावली १८ चंद्ररेखा १९. सुगंधा २०, शत्रुमर्दिनी २१. मानवी २२. मानहेसा २३. स्वभावा २४. भावमुद्रिका २५. मृगाक्षी २६. उर्वशी २७. रंम्भा (उत्तान) २८. भुजधोषा २९. जया ३०. विजया (मोहिनी) ३१. चंद्रवका (तिलोत्तमा) ३२. कामरुप (लोक ११३ से १३४) यह बत्तीस देवाशनाओंके नाम स्वरुप लक्षण, उनकी द्रष्टि निम्न रखके नृत्य करती करना । कई देवाङ्गनाका स्वरुप एकसे अधिक कोन कोनका करना। ३०३ देवाङ्गना दीग्पाल यक्ष गंधर्व सूर्यादि नवग्रहो चतुर्मुख प्रासादमें जंघामें वितानमें (गुम्बजमें) वेदिकामें करना देवाङ्गनाओंका स्थान स्वर्ग है। दुसरी द्योतवनमें, तीसरा महीसलके चातुर्मुख प्रासादमें स्थूल देहे बसेली है श्लोक १२३ पत्र ३०४ दो छज्जा और चार जंधाका मंडोवर कवली मान प्रमाण १ चित्रा २ विचित्रा ३ अभया ४ रुपचित्रा ३१६ सांधार निरंधार प्रसादके भितिमान
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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