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________________ २४० क्षीरार्णव अ. ११७ क्रमांक अ. १९ बाहर की रेखाके पर चौवीस भागकर विचका लिंगपीठ-स्तूप-मिति के साथ गर्भगृह-बारह भागका रखना। चार दिवारे तीन भागकी अर्थात् पौने पौने भाग की प्रत्येक दीवार मोटी रखना । बाकीके दोनों भ्रम दो द्रो भागके रखना । भ्रम की दिवारोके स्थानपर स्तम्भों की श्रेणी भीतके सूत्रके स्थानपर रखना । आगेकी कर्णरेखा-मंडपमें स्तम्भों की श्रेणीसे जानना । षत्रिंश कृते क्षेत्रे लिङ्ग पीठ दशाष्टकम् ॥७॥ भित्तिपइ सार्द्धश्च चत्वारिभ्रम कन्यसेत् । रूद्रसार्द्ध चतुभ्रम स्तंभ युक्तं न संशय ॥८॥ एवं विभक्ति मादाय भ्रमाद्वय विराजिते । (भ्रमा त्रीणि विराजित) इति भ्रमद्वय कनिष्ठमान હવે કનીષ્ટ માનના બે ભ્રમવાળા પ્રાસાદના ભાગે કહે છે. બહાર રેખાયે છત્રીશ ભાગ કરવા. તેમાં વચલે લિંગપીઠ (તૂપ) ભિતિ સહિત ગર્ભગૃહत्यसमा (सांधारपासादर मार लामनी रामवा. तना चतुर्भुमासाद ચાર ભી તે સાડા છ ભાગની (એટલે ૧ ભાગની એકેક કરવી) કનીષ્ઠ માનના કય બ્રમ ની રાખવી સાડા અગ્યાર भागना या अभ। (२॥= ભાગની એકેક) = પ્રદક્ષિણા -- मुख्यमे રાખવી. ભિતેના સ્થાને (બ્રમના ભદ્રમાં) સ્તંભે મૂકી શકાય. તેમાં સંશય ન કરે એ રીતે બે ભ્રમના પ્રાસાદના વિભાગ કનીમાનના જાણવા प्रम द्वय (कनिष्टमान) तलदर्शन अब कनिष्ठ मानसे दो भ्रमबाले प्रासादोंके भागों कहते है। बाहर रेखाके पर छत्तीस भाग करना । उसमें बिचका लिंगापीठ (स्तूप) (भित्तिसहित) गर्भगृह अठारह भागका रखना। उसकी चार दिवारें सारे छः भागकी (अर्थात् १शा भागकी एक करना) कनिष्ठमान के द्वय भ्रमकी रखना । साढ़े ग्यारह भाग के चार भ्रमों (२- भागकी एक एक प्रदक्षिणा रखना । भिंतोंके स्थानपर (भ्रम के २. इयाश्रीशेत् पंच अमबिस्तरे-पाठांतर । TRUE Hश्रम अ.भोसो
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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