SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मे सोधार भ्रम निरूपणाधिकार और मितिमान सांधार प्रासादके मान प्रमाण अब मैं तुम्हें कहता हूँ । देश हाथके उपरके प्रासादको भ्रम करना । दशसे पच्चीस हाथके प्रासादकों एक भ्रम करना । सत्ताईश हाथके प्रासाद को दो भ्रम करना और आठवें भागमें भ्रमभित्ति करना । .........इस तरह भ्रम और मित्ति के विभाग करना । हे मुनि ! अब एकाग्रतासे सुनो। प्रासाद बाहर रेखाके पर हो उसके बारह भाग कर बिचका स्तूप--गर्भगृह भित्तिके साथ साढे छ भागका रखना और दो अंतकी बाहर की दोनों दिवारें ढाई भाग की मोटी रखना । (अर्थात् सवा सवा भागकी एकेक दिवार मोटी) बाकीके तीन भागमें से डेढ़ डेढ़ भागका भ्रमका विस्तार जानना । १-२-३-४. इति एक भित्तिमान । द्विभ्रमं च प्रवक्ष्यामि यथा शास्त्रे न संभवः । चतुर्विंश कृते क्षेत्रे द्वादशं लिङ्ग पीठयोः ॥५॥ चतुर्भिभित्ति त्रिभागानि शेषं च भ्रम मुत्तमम् । स्तंभः श्रेणि यदा सूत्र भ्रमद्वय विराजिता ॥६॥ कर्ण मध्ये प्रकर्तव्या मंडपा महता श्रता । ॥ इति भ्रमद्वयं मध्यमान ॥ હવે બે ભ્રમનું શાસ્ત્રોક્ત માન સંશય વગરનું કહું છું સાંધાર પ્રાસાદની यभम.. (साधारासादा બહારની રેખાયે એવીશ - પુર્વ પ્રમાણે ભાગ કરી વચલું લિંગપીઠ= સ્તૂપ–ભિત્તિ સાથે ગર્ભગૃહ –બાર ભાગને રાખ ચાર ભીતે ત્રણ ભાગની એટલે પિણું પિણ ભાગની પ્રત્યેક ભિંત જાડી રાખવી. બાકીના બેઉ બ્રમે બબ્બે ભાગના Trt રાખવા ભ્રમની ભિતેના સ્થાને સ્તની શ્રેણી ભીંતને સૂત્રના સ્થાને રાખવી. આ ગલી કર્ણ-રેખા-મંડપમાં - मध्यमान द्वय भ्रम तल दर्शन સ્તની શ્રેણીથી જાણવી. अब दो भ्रमका शास्त्रोक्त मान असंशय कहता हूँ। सांधार प्रासदि की सम सम PL
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy