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________________ अथ शिखराधिकार हूँ। प्रासादकी रेखाके कोनेके बराबर चौडी कोकिला । यह शुभ लक्षण समझना । कोलीका दोनों तरफ एक एक कोकिला (प्रासादपुत्र) बनाना, यह प्रशंसनीय है ) रेखासे कम भागकी कोकिलाकी जाय, यह यमदंष्ट्रावेधरूप जानना । लेकिन वह प्रासादकी दिवारके मोटेपनके बरावर कोकिला शुभ कही है । सर्व लक्षण युक्त कोकिला (प्रासादपुत्र) करनेसे शुभफलको देती है । ३१-३२-३३. षड्भागैस्कंध विस्तारं सप्तभिः आमलसारकं । अर्धोदयं कर्तव्यं तदृर्षे कलशोत्तमा ॥३४॥ तथामलसारि च विस्तारं च अत:श्रृणु । सप्तभागमध्ये च चतुषष्टि विभाजितम् ।।३५।। द्वात्रिंशोदयं काय ग्रीवा भागं षडंमवेत् । अंडकं भास्करं विद्यात्-अष्ट चंद्रा विलोकित ॥३६॥ TRAF - bar विस्तार २८ भाग - आमलसारा १४मांग . Hamar HINDI M SASTERALLPATTERTAL ANG -- एकITTETRY शिखर स्कंधेभार्ग शिस्त्रका विस्तार भाग- असामिmy आलमसारा विभाग २८ x १४
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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