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________________ Version 001: remember to check http://www.Atma Dharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला ] कर्ता-कर्म-अधिकार भावार्थ इस प्रकार है कि क्रिया भी वस्तुमात्र है, वस्तुसे भिन्न सत्त्व नहीं । ‘यतः अनेकम् अपि एकम् एव [ यतः ] जिस कारणसे [ अनेकम् ] एक सत्त्वके कर्ता-कर्म - क्रियारूप तीन भेद [ अपि ] यद्यपि इस प्रकार भी है तधापि एकम् एव ] सत्तामात्र वस्तु है। तीनों विकल्प झूठे हैं। भावार्थ इस प्रकार कि ज्ञानावरणादि द्रव्यरूप पुद्गलपिण्ड - कर्मका कर्ता जीववस्तु है ऐसा जानपना मिथ्याज्ञान है, क्योंकि एक सत्त्वमें कर्ता-कर्म - क्रिया उपचारसे कहा जाता है। भिन्न सत्त्वरूप है जो जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य उनको कर्ता-कर्म - क्रिया कहाँ से घटेगा ?।। ७–५२।। — [ आर्या ] नोभौ परिणमतः खलु परिणामो नोभयोः प्रजायेत । उभयोर्न परिणतिः स्याद्यदनेकमनेकमेव स्यात् ।। ८-५३ ।। [ हरिगीत ] परिणाम दो का एक ना मिलकर नहीं दो परिणमे । परिणति दो की एक ना बस क्योंकि दोनों भिन्न हैं ।। ५३ ।। 66 "" खंडान्वय सहित अर्थ:- खलु उभौ न परिणमतः [ खलु ] ऐसा निश्चय है कि [ उभौ ] एक चेतनलक्षण जीवद्रव्य और एक अचेतन कर्म - पिण्डरूप पुद्गलद्रव्य [ न परिणमतः ] मिलकर एक परिणामरूप नहीं परिणमते हैं । ५१ भावार्थ इस प्रकार है कि जीवद्रव्य अपनी शुद्ध चेतनारूप अथवा अशुद्ध चेतनारूप व्याप्यव्यापकरूप परिणमता है। पुद्गलद्रव्य भी अपने अचेतन लक्षणरूप शुद्ध परमाणुरूप अथवा ज्ञानावरणादि कर्मपिण्डरूप अपनेमें व्याप्य - व्यापकरूप परिणमता है। वस्तुका स्वरूप ऐसा तो है परंतु जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य दोनों मिलकर अशुद्ध चेतनारूप है, राग-द्वेषरूप परिणाम उनसे परिणमते हैं ऐसा तो नहीं है। ' उभयोः परिणामः न प्रजायेत [ उभयोः ] जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य उनके [ परिणामः ] दोनों मिलकर एकपर्यायरूप परिणाम [ न प्रजायेत ] नहीं होते हैं । ' उभयोः परिणतिः न स्यात् ' [ उभयोः ] जीव और पुद्गलकी [ परिणतिः ] मिलकर एक क्रिया [ न स्यात् ] नहीं होती है। वस्तुका स्वरूप ऐसा ही है। " यतः अनेकम् अनेकम् एव सदा'' [ यतः ] जिस कारणसे [अनेकम् ] भिन्न सत्तारूप है जीव - पुद्गल [ अनेकम् एव सदा ] वे तो जीव - पुद्गल सदा ही भिन्नरूप हैं, एकरूप कैसे हो सकते हैं ? - भावार्थ इस प्रकार कि जीवद्रव्य - पुद्गलद्रव्य भिन्न सत्तारूप हैं सो जो पहले भिन्न सत्तापना छोड़कर एक सत्तारूप होवे तो पीछे कर्ता-कर्म - क्रियापना घटित हो । सो तो एकरूप होते नहीं, इसलिये जीव-पुद्गलका आपसमें कर्ता-कर्म - क्रियापना घटित नही होता ।। ८- ५३ ।। Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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