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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ५० समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [आर्या] यः परिणमति स कर्ता यः परिणामो भवेत्तु तत्कर्म। या परिणतिः क्रिया सा त्रयमपि भिन्नं न वस्तुतया।। ६-५१।। [हरिगीत] कर्ता वही जो परिणमे परिणाम ही बस कर्म है । है परिणति ही क्रिया बस तीनों अभिन्न अखण्ड हैं।।१।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "यः परिणमति स कर्ता भवेत् '' [ यः] जो कोई सत्तामात्र वस्तु [परिणमति] जो कोई अवस्था है उसरूप आपही है, इस कारण [ स कर्ता भवेत् ] उस अवस्थाका सत्तामात्र वस्तु कर्ता भी होता है। और ऐसा कहना विरुद्ध भी नहीं है, कारण कि अवस्था भी है। "यः परिणाम: तत् कर्म'' [यः परिणामः] उस द्रव्यका जो कुछ स्वभाव-परिणाम है [तत् कर्म] वह द्रव्यका परिणाम कर्म इस नाम से कहा जाता है। "या परिणतिः सा क्रिया'' [ या परिणतिः] द्रव्यका जो कुछ पूर्व अवस्थासे उत्तर अवस्थारूप होना है [सा क्रिया] उसका नाम क्रिया कहा जाता है। जैसे मृत्तिका घटरूप होती है, इसलिये मृत्तिका कर्ता कहलाती है, उत्पन्न हुआ घड़ा कर्म कहलाता है तथा मृत्तिकापिंडसे घटरूप होना क्रिया कहलाती है। वैसे ही सत्त्वरूप वस्तु कर्ता कहा जाता है, उस द्रव्यका उत्पन्न हुआ परिणाम कर्म कहा जाता है और उस क्रियारूप होना क्रिया कही जाती है । "वस्तुतया त्रयं अपि न भिन्नं'' [ वस्तुतया] सत्तामात्र वस्तुके स्वरूपका अनुभव करनेपर [त्रयम् ] कर्ता-कर्म-क्रिया ऐसे तीन भेद [अपिनिश्चयसे [ न भिन्नं ] तीन सत्त्व तो नहीं, एक ही सत्त्व है। भावार्थ इस प्रकार है कि कर्ता-कर्म-क्रियाका स्वरूप तो इस प्रकार है, इसलिये ज्ञानावरणादि द्रव्यपिण्डरूप कर्मका कर्ता जीवद्रव्य है ऐसा जानना झूठा है, क्योंकि जीवद्रव्य और पुद्गलद्रव्यका एक सत्त्व नहीं; [ त्यां] कर्ता-कर्म-क्रियाका कौन घटना ?।। ६-५१।। [आर्या ] एक: परिणमति सदा परिणामो जायते सदैकस्य। एकस्य परिणतिः स्यादनेकमप्येकमेव यतः।। ७-५२।। हरिगीत] अनेक होकर एक है हो परिणमित बस एक ही। रिणाम हो बस एकका हो परिणति बस एक की।।५२ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "सदा एकः परिणमति'' [ सदा] त्रिकालमें [ एक:] सत्तामात्र वस्तु [परिणमति] अपनेमें अवस्थान्तररूप होती है। "सदा एकस्य परिणाम: जायते'' [ सदा] त्रिकालगोचर [ एकस्य ] सत्तामात्र है वस्तु उसकी [ परिणामः जायते] अवस्था वस्तुरूप है। भावार्थ इस प्रकार है कि यथा सत्तामात्र वस्तु अवस्थारूप है तथा अवस्था भी वस्तुरूप है। "परिणति: एकस्य स्यात्'' [ परिणतिः] क्रिया [एकस्य स्यात् ] सो भी सत्तामात्र वस्तुकी है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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